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ज्ञानानन्दरत्नाकर। जी | चन्द्रप्रभा के चरणकमलकी कान्तिदेख शविहीनानी||महासेन के लाल नवाऊ मालपरम सुखदीनाजी ।।पुष्पदन्त महराज रखोगमलाज समरकरोसीणा जी। शीलशिरोमणि देवकरे तुमसेव सुफनमम जीनाजी ।।
॥चौपाई॥ , शीतलनाथ शीलसुख धामा। सिद्धि करो मनोवांछिन कागा ।। श्रेयांश श्रीपति गुण प्रामा | नोनाम थारा यमुयामा ||
॥दोहा॥ वासपच्य के पूज्यपद वप्तो हृदय ममत्रान ! विमलनाथ कळमलहरो करो घिमन कल्याण ॥ अनन्तनाय दीज अनन्त मुख यहपुजनो ममश्राश प्रभू । दीजै मुक्तिरसाल काट विविजाल रखो निजपास प्रभू ॥ २ ॥ धर्मनाय प्रभुधर्म धुरंधर धर्मवीर्थ करिमभू । प्रगटे धर्म जहाजनाथ किएभक्त भवोदधि पारम्भ।। शातिनाथ प्रभुशांति गुणोनिधि कापक्रोध किएतार प्रभू । दयासिन्यु त्रिभुवन के नायक दुःखदरिद्र हरिप्रभू ॥ कुंथुनाथ क्यूगजसम जीवों के रक्षण हारम अधमोद्धारक मबोदवि तारक देनहार सुखप्सार प्रभू ॥
॥चौपाई॥ अरहनाथ अरकाने चरि । जिनके वचन सुधारस मूरि॥ मल्लिनाथ मल्लन में भूरि । काममल्ल इनिकीना दरि ।।
॥दोहा॥ मुनि सुत्रताजनराज जी, प्रभुश्रनाथके नाय||कार्यसिद्धिपम कीजिए,नमोजोड़ युगहाथ ।। नमि प्रभु दीनदयालु पिटादो भव अरण्य का रासप्रभू । दीजै मुक्ति रसाल काट विधिनाल रखो निजपास प्रभू ।। ३॥ समुद्र विजय सुतनेम मुखो युतराजमती के कन्तप्रभू । यदुकुन तिलकशरण अशरण को देन हार सुखसंत प्रभू ।। पारस नाथ वालब्रह्मचारी तपधारी सुमहन्त प्रभु । नागनागनी जात बचाये दे निमपत्र तुरन्त प्रभू । महावीर महथीर महारिपु का का किया अन्त भभू । पावा पुरसे मुक्ति पधारे हो अन्तम अन्ति प्रभू ॥
॥चौपाई॥ नीनकाल के जिन चौरीम । त्रिविधि शुद्ध ध्याऊ जगदीश ।