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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गोम्मटसार। एवं मिस्सयभावो सम्मामिच्छोत्तिणादवो ॥ २२ ॥ दधिगुडमिव व्यामिश्रं पृथग्भावं नैव कर्तुं शक्यम् । एवं मिश्रकभावः सम्यग्मिथ्यात्वमिति ज्ञातव्यम् ॥ २२ ॥ अर्थ-जिसप्रकार दही और गुडको परस्पर इस तरहसे मिलानेपर कि फिर उन दोनोंको पृथक् २ नहीं करसकें, उस द्रव्यके प्रत्येक परमाणुका रस मिश्ररूप ( खट्टा और मीठा मिला हुआ) होता है । उस ही प्रकार मिश्रपरिणामोंमें भी एकही कालमें सम्यक्त्व और मिथ्यात्वरूप परिणाम रहते हैं ऐसा समझना चाहिये। . इस गुणस्थानमें होनेवाली विशेषताको दिखाते हैं । सो संजमं ण गिण्हदि देसजमं वा ण बंधदे आउं । सम्म वा मिच्छं वा पडिवजिय मरदि णियमेण ॥ २३ ॥ स संयम न गृह्णाति देशयमं वा न बध्नाति आयुः । सम्यक्त्वं वा मिथ्यात्वं वा प्रतिपद्य म्रियते नियमेन ॥ २३ ॥ अर्थ-तृतीय गुणस्थानवी जीव सकल संयम या देशसंयमको ग्रहण नहीं करता, और न इस गुणस्थानमें आयुःकर्मका बन्ध ही होता है । तथा इस गुणस्थानवाला जीव यदि मरण करता है तो नियमसे सम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूप परिणामोंको प्राप्त करके ही मरण करता है, किन्तु इस गुणस्थानमें मरण नहीं होता । उक्त अर्थको और भी स्पष्ट करते हैं। सम्मत्तमिच्छपरिणामेसु जहिं आउगं पुरा वद्धं । तहिं मरणं मरणंतसमुग्धादो वि य ण मिस्सम्मि ॥ २४ ॥ सम्यक्त्वमिथ्यात्वपरिणामेषु यत्रायुष्कं पुरा बद्धम् । तत्र मरणं मारणान्तसमुद्धातोपि च न मिश्रे ॥ २४ ॥ अर्थ-तृतीयगुणस्थानवी जीवने तृतीयगुणस्थानको प्राप्त करने से पहले सम्यक्त्व या मिथ्यात्वरूपके परिणामोंमेंसे जिस जातिके परिणाम कालमें आयुकर्मका बन्ध किया हो उस ही तरहके परिणामोंके होने पर उसका मरण होता है, किन्तु मिश्रगुणस्थानमें मरण नहीं होता । और न इस गुणस्थानमें मारणान्तिक समुद्धात ही होता है। परन्तु किसी २ आचार्यके मतके अनुसार इस गुणस्थानमें भी मरण हो सकता है । १ मूल शरीरको विना छोडे ही आत्माके प्रदेशोंका बाहिर निकलना इसको समुद्घात कहते हैं । उसके सात भेद हैं वेदना कषाय वैक्रियक मारणान्तिक तैजस आहार और केवल । मरणसे पूर्व समयमें होनेवाले समुद्धातको मारणान्तिक समुद्धात कहते हैं। For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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