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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोम्मटसारः । साकार उपयोगमें कुछ विशेषताको बताते हैं । अनाकार उपयोगका स्वरूप बताते हैं । मादिसुदओहिमणेहिंय सगसगविसये विसेसविण्णाणं । अंतोमुत्तकालो उवजोगो सो दु सायारो ॥ ६७३ ॥ मतिश्रुतावधिमनोभिश्च स्वकस्वकविषये विशेषविज्ञानम् । अन्तर्मुहूर्तकाल उपयोगः स तु साकारः ॥ ६७३ ॥ 1 अर्थ —–मति श्रुत अवधि और मन:पर्यय इनकेद्वारा अपने २ विषयका अन्तर्मुहूर्त कालपर्यन्त जो विशेषज्ञान होता है उसको ही साकार उपयोग कहते हैं । भावार्थ- -साकार उपयोगके पांच भेद हैं । मति श्रुत अवधि मनः पर्यय और केवल । इनमेंसे आदिके चार ही उपयोग ar जीवोंके होते हैं । उपयोग चेतनाका एक परिणमन है । तथा एक वस्तुके ग्रहणरूप यह चेतनाका यह परिणमन छद्मस्थ जीवके अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त कालतक ही रह सकता है । इस साकार उपयोग में यही विशेषता है कि यह वस्तुके विशेष अंशको ग्रहण करता है । इंदियमणोहिणा वा अत्थे अविसेसिदूण जं गहणं । अंतोमुहुत्तकालो उबजोगो सो अणायारो || ६७४ ॥ इन्द्रियमनोऽवधिना वा अर्थे अविशेष्य यद्ग्रहणम् । अन्तर्मुहूर्तकालः उपयोगः स अनाकारः ॥ ६७४ ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गो. ३२ अर्थ – इन्द्रिय मन और अवधिकेद्वारा अन्तर्मुहूर्तकालतक पदार्थों का जो सामान्यरूपसे ग्रहण होता है उसको निराकार उपयोग कहते हैं । भावार्थ - दर्शन के चार भेद हैं, चक्षुदर्शन अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन । इनमें से आदिके तीन ही दर्शन छद्मस्थ जीवोंके होते हैं । नेत्रकेद्वारा पदार्थका जो सामान्यावलोकन होता है उसको चक्षुदर्शन कहते हैं । और नेत्रको छोड़कर शेष चार इन्द्रिय तथा मनकेद्वारा जो सामान्यावलोकन होता है उसको अक्षुदर्शन कहते हैं । अवधिज्ञानके पहले इन्द्रिय और मनकी सहायताके विना आत्ममात्र से जो रूपी पदार्थविषयक समान्यावलोकन होता है उसको अवधि - दर्शन कहते हैं । यह दर्शनरूप निराकार उपयोग भी साकार उपयोगकी तरह छद्मस्थ जीवोंके अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्ततक ही होता है । I उपयोगाधिकार में जीवोंका प्रमाण बताते हैं । णाणुवजोगजुदाणं परिमाणं णाणमग्गणं व हवे । दंसणुवजोगियाणं दंसणमग्गण व उत्तकमो ॥ ६७५ ॥ २४९ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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