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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २३२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । वत्तीसं अडदालं सट्ठी वावत्तरी य चुलसीदी। छण्णउदी अट्टत्तरसयमहुत्तरसयं च खबगेसु ॥ ६२७ ॥ द्वात्रिंशदष्टचत्वारिंशत् षष्टिः द्वासप्ततिश्च चतुरशीतिः । षण्णवतिः अष्टोत्तरशतमष्टोत्तरशतं च क्षपकेषु ॥ ६२७ ॥ अर्थ-अंतरायरहित आठ समयपर्यन्त क्षपकश्रेणि माड़नेवाले जीव अधिकसे अधिक, उपर्युक्त आठ समयोंमें होनेवाले उपशमश्रेणि वालोंसे दूने होते हैं । इनमेंसे प्रथम समयमें ३२, दूसरे समयमें ४८, तीसरे समयमें ६०, चतुर्थ समयमें ७२, पांचमे समयमें ८४, छठे समयमें ९६, सातमे समयमें १०८, आठमे समयमें १०८ होते हैं । अट्टेव सयसहस्सा अट्ठाणउदी तहा सहस्साणं । संखा जोगिजिणाणं पंचसयविउत्तरं वंदे ॥ ६२८ ॥ अष्टैव शतसहस्राणि अष्टानवतिस्तथा सहस्राणाम् । संख्या योगिजिनानां पंचशतड्युत्तरं वन्दे । ६२८ ॥ अर्थ-सयोगकेवली जिनोंकी संख्या आठ लाख अठानवे हजार पांचसौ दो है। इनकी मैं सदाकाल बन्दना करता हूं । भावार्थ- निरंतर आठ समयोमें एकत्रित होनेवाले सयोगी जिनकी संख्या दूसरे आचार्यकी अपेक्षासे इस प्रकार कही है कि “छसु सुद्धसमयेसु तिण्णि तिण्णि जीवा केवलमुप्पाययंति, दोसु समयेसु दो दो जीवा केवल मुप्पाययंति एवमट्ठसमयसंचिदजीवा बावीसा हवंति" अर्थात् आठ समयोमेंसे छह समयोंमें प्रतिसमय तीन तीन जीव केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, और दो समयोंमें दो दो जीव केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं । इस तरह आठ समयोंमें वाईस सयोगी जिन होते हैं।। जब केवलज्ञानके उत्पन्न होने में छह महीनाका अंतराल होता है तब अन्तराल न पड़नेसे निरंतर आठ समयोंमें वाईस केवली होते हैं। इसके विशेष कथनमें छहप्रकारका त्रैराशिक होता है। प्रथम यह कि जब छह महीना आठ समयमात्र कालमें वाईस केवली होते हैं तब आठ लाख अठानवे हजार पांच सौ दो केवली कितने कालमें होंगे । इसका चालीस हजार आठसौ इकतालीसको छह महीना आठ समयोंसे गुणा करने पर जो कालका प्रमाण लब्ध आवे वही उत्तर होगा। दूसरा छह महीना आठ समयोमें निरंतर केवलज्ञान उत्पन्न होनेका काल आठ समय है तब पूर्वोक्त प्रमाण कालमें कितने समय होंगे । इसका उत्तर तीन लाख छब्बीस हजार सात सौ अट्ठाईस है । तथा दूसरे आचार्योंके मतकी अपेक्षा आठ समयोमें वाईस या चवालीस या अठासी या एकसौ छिहत्तर जीव केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं तब पूर्वोक्त समयप्रमाणमें या उसके आधेमें या चतुर्थाशमें या अष्टमांशमें कितने जीव केवलज्ञानको उत्पन्न करेंगे। इन चार प्रकारके त्रैराशिकोंका उत्तर आठ लाख अठानवे हजार पांचसौ दो होता है । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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