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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । . अग्रहीतं मित्रं ग्रहीतं मिश्रमग्रहीतं तथैव ग्रहीतं च । मिश्र ग्रहीतमग्रहीतं ग्रहीतं मिश्रमग्रहीतं च ॥२॥ अर्थ-पहला अग्रहीत मिश्र ग्रहीत, दूसरा मिश्र अग्रहीत ग्रहीत, तीसरा मिश्र ग्रहीत अग्रहीत, चौथा ग्रहीत मिश्र अग्रहीत, इस तरह चार प्रकारसे पुद्गलोंका ग्रहण होनेपर परिवर्तन के प्रारम्भ समयमें ग्रहण किये हुए पुद्गलोंका ग्रहण होता है । और तब ही एक द्रव्यपरिवर्तन पूरा होता है । इसका विशेष खरूप पहले लिख चुके हैं । भावार्थ- यहां पर प्रकरणके अनुसार शेष चार परिवर्तनोंका भी खरूप लिखते हैं । क्षेत्रपरिवर्तनके दो भेद हैं, एक खक्षेत्रपरिवर्तन दूसरा परक्षेत्रपरिवर्तन । एक जीव सर्व जघन्य अवगाहनाको जितने उसके प्रदेश हों उतनीवार धारण करके पीछे क्रमसे एक २ प्रदेश अधिक २ की अवगाहनाओंको धारण करते २ महामत्स्यकी उत्कृष्ट अवगाहनापर्यन्त . अवगाहनाओंको जितने समयमें धारण करसके उतने काल समुदायको एक खक्षेत्रपरिवर्तन कहते हैं। कोई जघन्य अवगाहनाका धारक सूक्ष्मनिगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव लोकके अष्ट मध्यप्रदेशोंको अपने शरीरके अष्ट मध्य प्रदेश बनाकर उत्पन्न हुआ, पीछे वही जीव उस ही रूपसे उस ही स्थानमें दूसरी तीसरी वार भी उत्पन्न हुआ । इसी तरह घनाङ्गुलके असंख्यातमे भागप्रमाण जघन्य अवगाहनाके जितने प्रदेश हैं उतनीवार उसी स्थानपर क्रमसे उत्पन्न हुआ और श्वासके अठारहमे भागप्रमाण क्षुद्र आयुको भोग २ कर मरणको प्राप्त हुआ। पीछे एक २ प्रदेशके अधिकक्रमसे जितने कालमें सम्पूर्ण लोकको अपना जन्मक्षेत्र बनाले उतने कालसमुदायको एक परक्षेत्रपरिवर्तन कहते हैं । ___ कोई जीव उत्सर्पिणीके प्रथम समयमें पहलीवार उत्पन्न हुआ, इस ही तरह दूसरीवार दूसरी उत्सर्पिणीके दूसरे समययें उत्पन्न हुआ, तथा तीसरी उत्सर्पिणीके तीसरे समयमें तीसरीवार उत्पन्न हुआ। इसही क्रमसे उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणीके वीस कोड़ाकोड़ी सागरके जितने समय हैं उनमें उत्पन्न हुआ, तथा इसही क्रमसे मरणको प्राप्त हुआ, इसमें जितना काल लगे उतने कालसमुदायको एक कालपरिवर्तन कहते हैं। कोई जीव दशहजार वर्षके जितने समय हैं उतनीवार जघन्य दश हजार वर्षकी आयुसे प्रथम नरकमें उत्पन्न हुआ, पीछे एक २ समयके अधिकक्रमसे नरकसम्बन्धी तेतीस सागरकी उत्कृष्ट आयुको क्रमसे पूर्ण कर, अन्तर्मुहूर्तके जितने समय हैं उतनीवार जघन्य अन्तर्मुहूर्तकी आयुसे तिर्यंचगतिमें उत्पन्न होकर यहांपर भी नरगतिकीतरह एक २ समयके अधिकक्रमसे तिर्यग्गतिसम्बन्धी तीन पल्यकी उत्कृष्ट आयुको पूर्ण किया । पीछे तिर्यग्गतिकी तरह मनुष्यगतिको पूर्ण किया, क्योंकि मनुष्यगतिकी भी जघन्य अन्तर्मुहूर्तकी तथा उत्कृष्ट तीन पत्यकी आयु है । मनुष्यागतिके बाद दश हजार वर्षके जितने समय हैं उतनीवार जपन्य दश हजार वर्षकी आयुसे देवगतिमें उत्पन्न होकर पीछे एक २ समयके For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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