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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir और जो कुछ संसारका झगडा है वह इन्हीं दोनों ( जीव-कर्म ) के संबन्धस है सो इनदोनोंका स्वरूप दिखानेकेलिये अपूर्व सूर्य है । न्यों. २ रु. १० प्रवचनसार-श्रीअमृतचन्द्रसूरिकृत तत्त्वप्रदीपिका सं. टी., "जो कि यूनिवर्सिटीके कोर्समे दाखिल है" तथा श्रीजयसेनाचार्यकृत तात्पर्यवृत्ति सं. टी. और बालावबोधिनी भाषाटीका इन तीन टीकाओं सहित छपाया गया है इसके मूलकर्ता श्रीकुन्दकुन्दाचार्य है। यह अध्यात्मिक ग्रन्थ है । न्यों. ३ रु. ११ मोक्षमाळा-कर्ता मरहुमसतावधानी कवी श्रीमद्राजचंद्र छे. आ एक स्याद्वाद तत्वावबोधवृक्षनुं बीज छे. आ ग्रन्थ तत्व पामवानी जिज्ञासा उत्पन्न करीशके एवं एमां कंइ अंशे पण दैवत रह्यं छे. आ पुस्तक प्रसिद्ध करवानो मुख्य हेतु उछरता बाळ युवानी अविवेकी विधा पामी जे आत्मसिद्धीथी भ्रष्ट थाय छे ते भ्रष्टता अटकाववानो छे. आ मोक्षमाळा मोक्षमेळववानां कारण रूप छे. आ पुस्तकनी बे बे आवृतिओ खलास थइ गइछे अने ग्राहकोनी बहोळी मागणी थी आ त्रीजी आवृति छपावी छे. कीमत आना बार. १२ भावनावोध-आ ग्रन्थना कर्ता पण उक्त महापुरुषज छे. वैराग्य ए आ ग्रन्थनो मुख्य विषय छे. पात्रता पामवानुं अने कषायमल दूर करवानुं आ ग्रन्थ उत्तम साधन छे. आत्मगवेषिओने आ ग्रन्थ आनंदोल्लास आपनार छे. आ ग्रन्थनी पण बे आवृतिओ खपी जवाथी अने ग्राहकोनी बहोळी मागणी थी आ त्रीजी आवृति छपावी छे. कीमत आना चार. आबंने ग्रन्थो गुजराती भाषामां अने बालबोध टाइपमां छपावेल छे. १३ परमात्मप्रकाश-यह ग्रंथ श्रीयोगींद्रदेव रचित प्राकृतदोहाओंमें है इसकी संस्कृतटीका श्रीब्रह्मदेवकृत है तथा भाषाटीका पं० दौलतरामजीने की है उसके आधारसे नवीन प्रचलित हिंदीभाषा अन्वयार्थ भावार्थ पृथकू करके बनाई गई है। इसतरह दो टीकाओं सहित छपगया है । ये अध्यात्मग्रंथ निश्चयमोक्षमार्गका साधक होनेसे बहुत उपयोगी है । न्यों० ३ रु. १४ षोडशकप्रकरण-यह ग्रन्थ श्वेताम्बराचार्य श्रीमद्धरिभद्रसूरिका बनाया हुआ संस्कृत आर्या छन्दोंमें है. इसमें सोलह धर्मोपदेशके प्रकरण हैं। इसका संस्कृत टीका तथा हिंदीभाषाटीका सहित प्रकाशन होरहा है । एक वर्षमें लगभग तैयार होजाइगा । १५ लब्धिसार ( क्षपणासार सहित )-यह ग्रन्थ भी श्रीनेमिचंद्राचार्य सिद्धांत चक्रवर्तीका बनाया हुआ है और गोम्मटसारका परिशिष्ट भाग है । इसीसे गोमटसारके स्वाध्याय करनेकी सफलता होती है। इसमें मोक्षका मूलकारण सम्यक्त्वके प्राप्त होनेकी पांच लब्धियोंका वर्णन है फिर सम्यक्त्व होनेके वाद कर्मों के नाश होनेका बहुत अच्छा क्रम बतलाया गया है कि भव्यजीव शीघ्र ही कर्मोसे छूट अनंत सुखको प्राप्त होकर अविनाशी पदको पासकते हैं । यह भी मूल गाथा छाया तथा संक्षिप्त भाषाटीका सहित छपाया जा रहा है । छह महीने के लगभग तयार होजाइगा । इस शास्त्रमालाकी प्रशंसा मुनिमहाराजोंने तथा विद्वानोंने बहुत की है उसको हम स्थानाभावसे लिख नहीं सकते । और यह संस्था किसी स्वार्थकेलिये नहीं है केवल परोपकारकेवास्ते है । जो द्रव्य आता है वह इसी शास्त्रमालामें उत्तमग्रन्थोंके उद्धारकेवास्ते लगाया जाता है ॥ इति शम् ॥ ग्रंथोंके मिलनेका पत्ता शा० रेवाशंकर जगजीवन जोहरी ऑनरैरी व्यवस्थापक श्रीपरमश्रुतप्रभावकमंडल जोहरी बाजार खाराकुवा पो० नं. २ बंबई. । For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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