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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । 1 हैं । इसके कृष्ण नील कापोत पीत पद्म शुक्ल ये छह भेद हैं । तथा प्रत्येकके उत्तर भेद अनेक हैं । छप्पयणील कवोद सुहेमंबुजसंखसण्णिहा वण्णे | संखेज्जासंखेजाणंतवियप्पा य पत्तेयं ॥ ४९४ ॥ षट्पदनीलकपोतसुहेमाम्बुजशङ्खसन्निभाः वर्णे । संख्येयासंख्येयानन्तविकल्पाश्च प्रत्येकम् ॥ ४९४ ॥ अर्थ -- वर्णकी अपेक्षा से भ्रमर के समान कृष्णलेश्या, नीलमणिके ( नीलम के ) समान नीललेश्या, कबूतरके समान कापोतलेश्या, सुवर्णके समान पीतलेश्या, कमलके समान पद्मलेश्या, शंखके समान शुक्ललेश्या होती है । इनमेंसे प्रत्येकके इन्द्रियोंसे प्रकट होने की अपेक्षा संख्यात भेद हैं, तथा स्कन्धकी अपेक्षा असंख्यात और परमाणुभेदकी अपेक्षा अनन्त भेद हैं । किस गति में कोनसी लेश्या होती है यह बताते हैं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir णिरया किन्हा कप्पा भावाणुगया हु तिसुरणरतिरिये । उत्तर देहे छक्कं भोगे रविचंदहरिदंगा ॥। ४९५ ॥ निरयाः कृष्णाः कल्पाः भावानुगता हि त्रिसुरनरतिरश्चि । उत्तर देहे षट्कं भोगे रविचन्द्रहरिताङ्गाः ।। ४९५ ॥ अर्थ - सम्पूर्ण नारकी कृष्णवर्ण हैं । कल्पवासी देवोंकी द्रव्यलेश्या ( शरीरका वर्ण ) भावलेश्या के सदृश होता है । भवनवासी व्यन्तर ज्योतिषी मनुष्य तिर्यञ्च इनकी द्रव्यलेश्या छहों होती हैं । तथा विक्रिया के द्वारा उत्पन्न होनेवाले शरीरका वर्ण भी छह प्रकारमेंसे किसी एक प्रकारका होता है । उत्तम भोगभूमिवालोंका सूर्यसमान, मध्यम भोगभूमिवालोंका चन्द्रसमान, तथा जघन्य भोगभूमिवालोंका हरितवर्ण शरीर होता है । बादरआऊऊ सुक्कातेऊय वाउकायाणं । गोमुत्तमुग्गवण्णा कमसो अच्वत्तवण्णो य ॥ ४९६ ॥ बादराप्तैजसौ शुक्लतेजसौ वायुकायानाम् । गोमूत्रमुद्गवर्णौ क्रमशः अव्यक्तवर्णश्च ॥ ४९६ ॥ अर्थ — क्रमसे बादर जलकायिककी द्रव्यलेश्या शुक्ल और बादर तेजस्कायिककी पीत होती है । वायुकायके तीन भेद हैं, घनोदधिवात, घनवात, तनुवात । इनमें से प्रथमका शरीर गोमूत्रवर्ण, दूसरेका शरीर मूंगसमान, और तीसरेके शरीरका वर्ण अव्यक्त है । 1 सवेसिं सुहुमाणं कावोदा सब विग्गहे सुक्का । सो मिस्सो देहो कवोदवण्णो हवे णियमा ॥ ४९७ ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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