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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्। विषय. पृ. पं. विषय. अवधिका सबसे जघन्य द्रव्य १४३।१७ विपुलमतिका द्रव्य १६५।२१ अवधिका जघन्य क्षेत्र ... १४३१२८ दोनों भेदोंके क्षेत्रादिका प्रमाण १६६।११ जघन्यक्षेत्रका विशेष कथन १४४। ७ केवल ज्ञानका स्वरूप ... ... १६७।१६ अवधिका समयप्रबद्ध ... ... १४५।२७ ज्ञानमार्गणामें जीवसंख्या ... ... १६७४२९ ध्रुवहारका प्रमाण १४६॥ ५, संयममार्गणा अ-१३ मनोद्रव्य-वर्गणाका जघन्य और उत्कृष्ट संयमका स्वरूप और उसके पांच भेद १६९। १ प्रमाण ... ... ... १४६।१४ सयमका उत्पात्तका कारण १६९।१० प्रकारान्तरसे ध्रुवहारका प्रमाण ... १४६।२३ देशसंयम और असंयमका कारण ... १७०। ३ देशावधिके द्रव्यकी अपेक्षा भेद ... १४७॥ ६ सामायिक संयम १७०।१० क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट प्रमाण १४७११५ छेदोपस्थापना संयम १७०।१९ वर्गणाका प्रमाण ... ... १४७१२४ परिहारविशुद्धि संयम ... १७०१२८ परमावधिके भेद १४८॥ ३ सूक्ष्मसांपराय संयम ... १७१।१७ देशावधिके विकल्प और उनके विषयभूत यथाख्यात संयम १७१।२६ क्षेत्रादिके प्रमाण निकालनेके क्रम... १४८।१२ देशविरत ... ... १७२। ९ उन्नीस काण्डकमें दोनों क्रमोंका खरूप... १५०१० असंयत ... १७२१२५ ध्रुववृद्धिका प्रमाण ... ... १५२। ४ इन्द्रियोंके अट्ठाईस विषय ... १५२। ... १७३। ३ अध्रुववृद्धिका प्रमाण ... १५२।१६ संयमकी अपेक्षा जीवसंख्या ... १७३।१२ उत्कृष्ट देशावधिके विषयभूत द्रव्यादिका दर्शनमार्गणा अ-१४ प्रमाण ... ... ... १५३। १ दर्शनका लक्षण ... ... १७४। १ परमाबधिके जघन्य द्रव्यका प्रमाण ... १५३।२५ चक्षुदर्शन आदि ४ भेदोंका क्रमसे स्वरूप १७४।१७ उत्कृष्ट द्रव्यका प्रमाण ... ... १५४। ३ दर्शनकी अपेक्षा जीवसंख्या ... १७५।१३ सर्वावधिका विषयभूत द्रव्य ... ... १५४।११ लेश्यामार्गणा अ-१५ परमावधिके क्षेत्र कालकी अपेक्षा भेद १५४।२२ लेश्याका लक्षण... ... ... १७६।११ विषयके असंख्यातगुणितक्रमका प्रकार १५४।२८ लेश्याओंके निर्देश आदि १६ अधिकार १७७ १ प्रकारांतरसे गुणाकारका प्रमाण ... १५५।१७ १ निर्देश १७७११३ परमावधिके विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्र और २ वर्ण १७७।२४ कालका प्रमाण निकालनेकेलिये दो ३ परिणाम १७९। ६ करणसूत्र ... ... ... १५६।१३ ४ संक्रम १८०।१८ जघन्य देशावधिसे सर्वावधिपर्यंत भाव ५ कर्म १८२। ९ का प्रमाण ... ... ... १५६।३० ६ लक्षण १८३। १ नरकगतिमें अवधिका क्षेत्र... ... १५७।२० ७ गति १८५। ९ तिर्यंच और मनुष्यगतिमें अवधि ... १५७।३० ८ स्वामी १८९।१८ देवगतिमें अवधिका क्षेत्रादि ... १५८। ९ ९ साधन १९२। १ मनःपर्यय ज्ञानका स्वरूप ... ... १६१।२८ १० संख्या १९२।१२ मनःपर्ययके भेद १६श ७ ११ क्षेत्र १९४/२७ मनःपर्ययके दो भेदोंका विशेष स्वरूप १६२।२६ १२ स्पर्श १९६। ६ मनःपर्ययका स्वामी आदि... ... १६४। १ १३ काल १९८४१६ ऋजुमतिका जघन्य और उत्कृष्ट द्रव्य १६५।१४ १४ अंतर १९९/१२ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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