SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १३८ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । एकसे लेकर कितने विकल्प होसकते हैं उन विकल्पोंका वर्णन किया है । जैसे सामान्यकी अपेक्षासे जीवद्रव्यका एक ही स्थान (विकल्प भेद) है, संसारी और मुक्तकी अपेक्षासे दो भेद हैं, उत्पाद व्यय ध्रौव्यकी अपेक्षासे तीन भेद है, चार गतियोंकी अपेक्षासे चार भेद हैं, इत्यादि । इस ही तरह पुद्गल आदिक द्रव्योंके भी विकल्प समझना। चौथे समवायाङ्गमें सम्पूर्ण द्रव्योंमें परस्पर किस २ धर्मकी अपेक्षासे सादृश्य है यह बताया है । पाचमे व्याख्याप्रज्ञप्ति अङ्गमें जीव है या नहीं ? वक्तव्य है अथवा अवक्तव्य है ? नित्य है या अनित्य है ? एक है या अनेक है ? इत्यादि साठ हजार प्रश्नोंका व्याख्यान है । छट्टे नाथधर्मकथा अथवा ज्ञातृधर्मकथा अङ्गमें जीवादि वस्तुओंका स्वभाव, तीर्थकरों का माहात्म्य, तीर्थंकरोंकी दिव्यध्वनिका समय तथा माहात्म्य, उत्तम क्षमा आदि दश धर्म, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयधर्मका स्वरूप बताया है । तथा गणधर इन्द्र चक्रवर्ती आदिकी कथा उपकथाओंका वर्णन है । सातमे उपासकाध्ययन अङ्गमें उपासकोंकी ( श्रावकोंकी) सम्यग्दर्शनादिक ग्यारह प्रतिमासम्बन्धी व्रत गुण शील आचार तथा दूसरे क्रिया काण्ड और उनके मन्त्रादिकोंका सविस्तर वर्णन किया है । आठमे अन्तःकृद्दशाङ्गमें प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थमें जो दश २ मुनि चार प्रकारका तीव्र उपसर्ग सहन करके संसारके अन्तको प्राप्त हुए उनका वर्णन है । नौमे अनुत्तरौपदादिकदशाङ्गमें प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थमें होनेवाले उन दश दक्ष मुनियोंका वर्णन है जो कि घोर उपसर्गको सहन करके अन्तमें समाधिके द्वारा अपने प्राणोंका त्याग करके विजय आदि पांच प्रकारके अनुत्तर विमानोंमें उत्पन्न हुए । दशमे प्रश्नव्याकरण अङ्गमें दूतवाक्य नष्ट मुष्टि चिन्ता आदि अनेक प्रकारके प्रश्नोंके अनुसार तीन कालसम्बन्धी धन धान्यादिका लाभालाभ सुख दुःख जीवन मरण जय पराजय आदि फलका वर्णन है । और प्रश्नके अनुसार आक्षेपणी विक्षेपणी संवेजनी निर्वजनी इन चार प्रकारकी कथाओंका वर्णन है । ग्यारहमे विपाकसूत्र में द्रव्यक्षेत्र काल भावके अनुसार शुभाशुभ कर्मों की तीव्र मंद मध्यम आदि अनेक प्रकारकी अनुभाग-शक्तिके फल देनेरूप विपाकका वर्णन है । बारहमे दृष्टिवाद अङ्गमें तीन सौ त्रेसठ मिथ्या मतों का वर्णन और उनका निराकरण है। दृष्टिवाद अङ्गके पांच भेद हैं परिकर्म सूत्र प्रथमानुयोग पूर्वगत चूलिका । परिकर्ममें गणित के करणसूत्रों का वर्णन है । इसके (परिकर्मके ) पांच भेद हैं, चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति द्वीपसागरप्रज्ञप्ति व्याख्याप्रज्ञप्ति । चन्द्रप्रज्ञप्तिमें चन्द्रमासम्बन्धी विमान आयु परिवार ऋद्धि गमन हानि वृद्धि पूर्ण ग्रहण अर्ध ग्रहण चतुर्थांश ग्रहण आदिका वर्णन है । इस ही प्रकार सूर्यप्रज्ञप्तिमें सूर्यसम्बन्धी आयु परिवार गमन ग्रहण आदिका वर्णन है । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिमें जम्बूद्वीपसम्बन्धी मेरु १ एक तीर्थकरके अनन्तर जब तक दूसरा तीर्थकर उत्पन्न न हो तब तकके समयको प्रथम तीर्थकरका तीर्थ कहते हैं। For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy