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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गोम्मटसारः । चौदह पूर्वोमेंसे प्रत्येक पूर्वकें पदोंका प्रमाण बताते हैं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १३७ पणदाल पणतीस तीस पण्णास पण्ण तेरसदं । उदी दाल पुत्रे पणवण्णा तेरससयाई || ३६४ ॥ छस्सय पण्णासाईं चउसयपण्णास छसयपणुवीसा । fafe लक्खेहि दु गुणिया पंचम रूऊण छज्जुदा छट्ठे ॥ ३६५ ॥ पञ्चाशदृष्टचत्वारिंशत् पञ्चत्रिंशत् त्रिंशत् पञ्चाशत् पञ्चाशत् त्रयोदशशतम् । नवतिः द्वाचत्वारिंशत् पूर्वे पञ्चपञ्चाशत् त्रयोदशशतानि ॥ ३६४ ॥ षट्छतपञ्चाशानि चतुःशतपञ्चाशत् षट्छतपञ्चविंशतिः । द्वाभ्यां लक्षाभ्यां तु गुणितानि पञ्चमं रूपोनं षट्युतानि षष्ठे || ३६५ ॥ 1 अर्थ — चौदह पूर्वो में से क्रमसे प्रथम उत्पाद पूर्व में एक करोड़ पद हैं। दूसरे आप्रायणीय पूर्वमें छ्यानवे लाख पद हैं। तीसरे वीर्यप्रवाद में सत्तर लाख पद हैं । चतुर्थ अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्वमें साठ लाख पद हैं। पांच ज्ञानप्रवाद में एक कम एक करोड़ ( ९९९९९९९ ) पद हैं। छट्ठे सत्यप्रवाद पूर्वमें एक करोड़ छह (१००००००६) पद हैं । सातमे आत्मप्रवादमें छव्वीस करोड़ पद हैं । आठमे कर्मप्रवाद पूर्व में एक करोड़ अस्सी लाख पद हैं। नौमे प्रत्याख्यान पूर्वमें चउरासी लाख पद हैं । दशमे विद्यानुवाद पूर्व में एक करोड़ दश लाख पद हैं । ग्यारहमे कल्याणवाद पूर्वमें छव्वीस करोड़ पद हैं । बारहमे प्राणावाद पूर्वमें तेरह करोड़ पद हैं | तेरहमे क्रियाविशाल पूर्व में नौ करोड़ पद हैं । चौदहमे त्रिलोकबिन्दुसारमें बारह करोड़ पचास लाख पद हैं। भावार्थ - चौदह पूर्वोमेंसे किस २ पूर्वमें कितने २ पद हैं यह इन दो गाथाओंमें बता दिया है । अब प्रकरण पाकर यहां पर द्वादशाङ्ग तथा चौदह पूर्वोंमें किस २ विषयका वर्णन है यह संक्षेपसे विशेष बताया जाता है । प्रथम आचाराङ्गमें 'किस तरह आचरण करै ? किस तरह खड़ा हो ? किस तरह बैठे ? किस तरह शयन करै ? किस तरह भाषण करै ? किस तरह भोजन करे ? पापका बन्ध किस तरह से नहीं होता ?' इत्यादि प्रश्नोंके अनुसार 'यत्नपूर्वक आचरण करै, यत्नपूर्वक खड़ा हो, यत्नपूर्वक बैठे, यत्नपूर्वक शयन करै, यत्न पूर्वक भाषण करै, यलपूर्वक भोजन करे इस तरह से पापका बन्ध नहीं होता' इत्यादि उत्तररूप वाक्योंके द्वारा मुनियोंके समस्त आचरणका वर्णन किया है' । दूसरे सूत्रकृताङ्गमें ज्ञानविनय आदि निर्विघ्न अध्ययनक्रियाका अथवा प्रज्ञापना कल्पाकल्प छेदोपस्थापना आदि व्यवहारधर्मक्रियाका, तथा स्वसमय और परसमयका स्वरूप सूत्रोंके द्वारा बताया है । तीसरे स्थानाङ्गमें सम्पूर्ण द्रव्यों के For Private And Personal १ कथं घरे कथं चिट्ठे कथमासे कथं सए, कथं भुंजीज्ज भासेज्ज जदो पावं ण बंधई" इसके उत्तर में "जदं चरे जदं चिट्ठे जदमासे जदं सये जदं भुजीज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बंधई" इत्यादि ॥ गो. १८
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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