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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । और ज्ञानप्रवादके ऊपर भी क्रमसे बारह वस्तुकी वृद्धि होनेसे सत्यप्रवाद होता है । इस ही तरह आगेके आत्मप्रवाद आदिकका प्रमाण भी समझना चाहिये। ___ चौदह पूर्वके समस्त वस्तुकी और उनके अधिकारभूत समस्त प्राभृतोंके जोड़का प्रमाण बताते हैं। पणणउदिसया वत्थू पाहुडया तियसहस्सणवयसया । एदेसु चोइसेसु वि पुवेसु हवंति मिलिदाणि ॥ ३४६ ॥ • पञ्चनवतिशतानि वस्तूनि प्राभृतकानि त्रिसहस्रनवशतानि । एतेषु चतुर्दशस्वपि पूर्वेषु भवन्ति मिलितानि ॥ ३४६ ॥ । अर्थ-इन चौदह पूर्वोके सम्पूर्ण वस्तुओंका जोड़ एकसौ पचानवे ( १९५ ) होता है । और एक २ वस्तुमें वीस २ प्राभृत होते हैं इस लिये सम्पूर्ण प्राभृतोंका प्रमाण तीन हजार नौ सौ ( ३९०० ) होता है । पहले वीसप्रकारका जो श्रुतज्ञान बताया था उस हीका दो गाथाओंमें उपसंहार करते हैं । अत्थक्खरं च पदसंघातं पडिवत्तियाणिजोगं च । दुगवारपाहुडं च य पाहुडयं वत्थु पुत्वं च ॥ ३४७ ॥ कमवण्णुत्तरवड्डिय ताण समासा य अक्खरगदाणि । णाणवियप्पे वीसं गंथे बारस य चोदसयं ॥ ३४८ ॥ अर्थाक्षरं च पदसंघातं प्रतिपत्तिकानुयोगं च । द्विकबारप्राभृतं च च प्राभृतकं वस्तु पूर्व च ॥ ३४७ ॥ क्रमवर्णोत्तवर्धिते तेषां समासाश्च अक्षरगताः । ज्ञानविकल्पे विंशतिः ग्रन्थे द्वादश च चतुर्दशकम् ॥ ३४८ ॥ अर्थ-अर्थाक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्तिक, अनुयोग, प्रामृतप्राभृत, प्राभृत, वस्तु, पूर्व, ये नव तथा क्रमसे एक २ अक्षरकी वृद्धिके द्वारा उत्पन्न होनेवाले अक्षरसमास आदि नव इस तरह अठारह भेद द्रव्य श्रुतके होते हैं। पर्याय और पर्यायसमासके मिलानेसे वीस भेद ज्ञानरूप श्रुतके होते हैं। यदि ग्रन्थरूप श्रुतकी विवक्षा की जाय तो आचाराङ्ग आदि बारह और उत्पादपूर्व आदि चौदह भेद होते हैं । द्वादशाङ्गके समस्त पदोंकी संख्या बताते हैं । बारुत्तरसयकोडी तेसीदी तहय होंति लक्खाणं । . अठ्ठावण्णसहस्सा पंचेव पदाणि अंगाणं ॥ ३४९ ॥ द्वादशोत्तरशतकोट्यः त्र्यशीतिस्तथा च भवन्ति लक्षानाम् । ... .. अष्टापञ्चाशत्सहस्राणि पश्चैव पदानि अंङ्गानाम् ।। ३४९ ॥ For Private And Personal
SR No.010692
Book TitleGommatsara Jivakand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages305
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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