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वीरस्तुतिः । . . त्रस-कोई थी भय, त्रास, उद्वेग पामीने अथवा सतामणी पामतां पोताना चचाव अर्थे जे अहीं तहीं हरी फरी के भागी शके छे, ते त्रस छे, तेना वेंद्रिय, तेन्द्रिय, चौरिंद्रिय अने पंचेंद्रिय एवा चार मेद छे; - - -
स्थावर-पृथ्वी-पाणी-अग्नि-वायु अने वनस्पति ए पांच स्थावरना मेट छे। तेओ पोताना पर आवी पडेला संकटोमाथी वचवानो प्रयत्न करवामा सर्वथा अशक्त छे, घणीज ओछी समजवाला छे, जन्म-मरण घणां करे छ; पृथ्वी-पाणी-अमि अने वायुना जीवो ४८ मिनिटमा १२८२४ वार जन्मे छ ने मरे छ, वनस्पतिमां निगोदना जीवो ६५५३६ वार जन्मे मरे छे, एक श्वासोश्वासमां ते एटला भव करे छे, आथीं आ वधा स्थावर कहेवाय छ। आ दरेकमा जीव छे, अने ते केवा स्वरूपे छे ते नीचेनी हकीकते समजाशे ते तमामने शरीर छे, अने तेना शरीरने मनुष्यना शरीर साथे जुदी जुदी रीते सरसाववामा आवे छे ।।
पृथ्वीकाय-जेम मनुष्यने काइ वागेलं होय अने घा पडेल होय, ते रुझाता धीमे धीमे भराइ जाय छे, तेम खोदेली खाणो पण स्वयं भराइ जाय छे, जेम उघाडापगे चालनार मनुष्यना पगर्नु तळिऊ घसाय छे तेम वधतु जाय छे,तेवीज रीते माणसो-पशुपक्षी तथा वाहनोनी आवजाव-थवाथी पृथ्वी पण रोज घसाय छे, ने रोज वधवा पामे छे, जेम वालक वधे छे-तेम पर्वत पण धीमे धीमे नित्य वधे छे, माणसने लोढुं पकडबुं होयतो माणसने लोढा पासे जवं. पडे छे, सारे लोह चुंबक नामनो पत्थर पोताने स्थाने रहीने पोतानी चैतन्य शक्ति थी लोढाने पोतानी पासे खेंची ले छे, माणसना पेटमा पथरीनो रोग थाय छ ते सचेत पत्थर होवाथी नित्य वधे छे, माछलीना पेटमा रहेल मोती पण एक जातनो पत्थर छे, अने ते पण नित्य वधे छे, जेम माणसना शरीरमांना हाडकामां जीव होय छे, तेम पत्थरमा पण जीव होय छ ।
अपकाय-जेम पक्षीना इंडामा रहेल प्रवाही पदार्थ पंचेन्द्रिय पक्षीना पिंड स्वरूपे छ, तेम पाणीना जीवो पण ते एकेन्द्रिय जीवोना पिंड रूपे छे, मनुष्य तथा तिर्यच गर्भ अवस्थामा शरूआतमा प्रवाही पाणी रूपे होय छे, तेम पाणीमां पण जीव समजवा, जेम शियाळामां मनुष्यना मुखमांथी वराळ नीकळे ,, तेम कुवाना पाणीमांधी पण वराळ नीकळे छे, जेम शियाळामां मनुष्य शरीर गरम होय छे, तेम शियाळामों कुत्वानुं पाणी पण गरम होय छे, जेम गरमीमां मनुष्यनुं शरीर शीतळ होय छे, तेम उनाळामा कुवातुं पाणी पण शीतल होय छे,