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________________ वीरस्तुतिः। - पाधिका प्रलय होनेपर आत्माका मोक्ष होता है। वेदान्त कहता है कि मायोपाधिका प्रलय होनेपर आत्माका मोक्ष है। जैन कहते हैं कि-आत्माका मोक्ष होनेपर 'अपुणरावित्ति' संसारमें पुनरागमन नहीं होता अर्थात् . आत्माको फिरसे जन्म मरणके चक्रमें नहीं आना पडता। वेदांत कहता है , कि-"न पुनरावर्तते" आत्माकी पुनरावृत्ति नहीं होती। गीताजीमें भी कृष्णचन्द्रजीने कहा है कि-"यद्गत्वा न निवर्तन्ते, तद्धाम परमं मम" 'जहां गये वाद फिर आना नहीं पडता' वही मेरा परमधाम है । अर्थात् परमात्माके धामको परमधाम कहते हैं या मोक्ष कहते हैं । वहा जानेपर फिर वापस नहीं आना होता । जैन कहते हैं कि-'एगे आया' आत्मा द्रव्य गुण पर्यायकी दृष्टिसे एक है। वेदान्त कहता है कि "एकोऽहम्" मै एक हू। जैन कहते हैं कि- "तक्का जत्थ ण विजह, मइ तत्थ ण गाहिता' तर्क आत्माके स्वरूप तक नहीं पहुंच सकता, और मति उस आत्माके खरूपको ग्रहण नहीं कर सकती । वेदान्त कहता है कि-"यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह" जहासे वाणी वापस फिर जाती है वह आत्म स्वरूप मन द्वारा अप्राप्य है। भावार्थ यह है कि-मन और वाणी उस आत्मा का वर्णन नहीं कर सकते। जैन कहते हैं कि-आत्माको सम्पूर्ण या अखंड रूपमें जानने वाले मनुष्य कैवल्य ज्ञानको पाते हैं। वेदान्त कहता । है कि-"कैवल्यपदमस्तुते" आत्मा कैवल्य पदका अनुभव करता है। वेदान्त कहता है कि-अखिल विश्वमें सच्चिदानन्द परब्रह्म सर्वव्यापक है। जैन कहते हैं कि-अखिल विश्वमें मारनेसे मरता नहीं, जलानेसे जलता नहीं, काटनेसे कटता नहीं, मेदन करनेसे मेदित नहीं होता, और चर्मचक्षु द्वारा दीख नहीं सकता, ऐसा सम्चिदानन्द खरूप जीव स्वाभाविकतासे सधन, रूपमें भरे पडे हैं। आकाश, पर्वत, पृथ्वी, नक्षत्र आदि कोई भी स्थान जीवसे खाली नहीं है। अर्थात् चैतन्यलक्षणयुक्त जीवकी दृष्टिसे देखनेपर चैतन्यदेव समस्त लोकमें भरपूर है । वेदान्त कहता है कि आत्मा खयं सर्वज्ञ है, जैन भी यही कहते हैं कि आत्मा अनन्त ज्ञानमय है। वेदान्त कहता है कि ब्रह्म सनातन है । जैन कहते है कि आत्मा खयं शुद्ध-बुद्ध आनन्द खरूप है और सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी है। वेदान्त और सांख्यादि भी यही कहते हैं । वल्लभाचार्य मतप्रवर्तक कहते हैं कि-निर्दोष.
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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