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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता - - - . - - . . . . ना नितादेरिति यावज्जयं तिरस्क्रियां चकार । "विष्टपं भुवनं लोको - जगदिति कोषः” । “परिभवः पराभवस्तिरस्क्रियेति कोषः" । अतो .. व्याख्याप्रज्ञप्तिः-(भगवती) विआहेणं ससमया विआहिजंति, परसमया विआहिजंति, ससमय-परसमया विआहिज्जंति, जीवा विआहिजति, अजीवा विआहिजंति, जीवाजीवा विआहिज्जति, लोगे विआहिजति, अलोगे विआहि.. जंति, लोगालोगे विआहिजंति, विआहे णं नाणाविहसुरनरिंदरायरिसिविविहसंसइभ -पुच्छिआणं, जिणेणं वित्थरे ण, भासिआणं, दव्वगुण-खित्त-काल-- पनव-पदेस-परिणाम-जहत्यि अभाव अणुगम-निक्खेव-णय-प्पमाण सुनिउगोवक्कम विविहप्पकारपगडपयासिआणं. ससारसमुहरुंदउत्तरणसमत्थाणं, सुरवइ.. संपूजिआण, भवियजणपयहिअयाभिनदिआणं, तमरयविद्धसणाणं, सुदिदीव' भूअईहामतिबुद्धिवद्धमाणाणं छत्तीससहस्समणूणया ण वागराणाणं दसणाओ, सुअत्यवहुबिहप्पगारा, सीसहिअत्था xxxxx पंचमे अगे एगे सुअक्खधे, एगे साइरेगे मज्झयणसये, दसउद्देसगसहस्साइ, दससमुद्दसगसहस्साई, छतीस वागरणसहस्साई, चउरासीइं पयसहस्साई। , । व्याख्याप्रज्ञप्तिः- (भगवती) सूत्र में स्खसमय, परसमय, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक, इत्यादि कथनके अतिरिक्त, भिन्नभिन्न प्रकारसे देव, राजा, राजर्षि, और अनेक प्रकारके सन्दिग्ध पुरुषोंके पूछे हुए प्रश्नोंका जिनेन्द्रदेवने विस्तारपूर्वक जो उत्तर दिए हैं । और वे उत्तर द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल, पर्यव, प्रदेश और परिणाम के अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण और विविध तथा सुनिपुण उपक्रम पूर्वक यथास्तिभावके प्रतिपादक हैं। जिससे लोक और अलोक दोनों प्रकाशित हैं । जो विशाल ससार समुद्रसे पार कर देने में समर्थ है । इन्द्रों द्वारा पूजित हैं, भव्य लोकोंके हृदयके अभिनन्दक हैं, अन्धकार रूप मैलके नाशक है। सुन्दर और दर्शनीय हैं, दीपक की तरह वस्तुका तथ्य निर्णय देने वाले हैं। ईहा, मति, और घुद्धिके बढानेवाले हैं, जिनकी सख्या ३६००० में पूर्ण होती हैं, और जो उत्तरोंके उपनिवन्धसे वहुत' प्रकारके श्रुतार्योंके समुदायरूप शिष्यों के हितार्थ गुणहस्तरूप हैं। पंचम अग (भगवती):सूत्रमें एक श्रुतस्कन्ध,, साधिक अति उत्तम सौ १०० अध्याय हैं। दशहजार उद्देशक, १०१०० समुद्देशक, ३६००० प्रश्न और ८४१०१६ पद सख्या है। . . . . . . । । .
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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