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________________ वीरस्तुतिः। - - ऽन्तकाश्यपः । नाथान्वयो, वर्धमानो, यत्तीर्थमिह साम्प्रतम् ।" इति धनंजयनाममाला । अथाऽसावपि भगवान् सुधर्माखाम्येवं गुणविशिष्टो ज्ञातपुत्रो महावीर इति' कथितवांश्च मां प्रतीति शेषः । एवं चासौ वर्धमानोऽर्हन् “सर्वज्ञो वीतरागोऽर्हन् , केवली धर्मचक्रभृत्!' 'इति धनञ्जयः । विष्टपस्य संसारस्य सांसारिकविषयस्येत्यर्थः सचन्दनव' , स्थानांग:-ठाणेणं ससमया ठाविनंति, परसमया ठाविनंति, ससमयपरसमया ठाविनंति, जीवा ठाविनंति, अजीवा ठाविनंति, जीवाजीवा ठाविजंति, लोंगा, अलोगा, लोगालोगा गविजंति, x x x x x तइए अरे 'पणसुअक्खंघा दस अज्झयणा, एकवीसं उद्देसणकाला, एकवीसं समुद्देसणंकाला, वावत्तरि पदसहस्साई।। स्थानांगः-स्थानांग सूत्र में निरूपण किए हुए ये विषय हैं । खसमय, परसमय, ख-परसमय, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक का स्थापन, तीसरे ( स्थानाग) अंग में पांच श्रुतस्कन्ध, दश अध्याय, २१ उद्देशनकाल, २१ समुद्देशनकाल, और ७२००० पद संख्या है। समवायांगः-समवाएणं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जंति, ससमयपरसमया सूइज्जति, समवाएणं एकाइयाणं एगठाणं एगुत्तरियं, परिवुहिए, दुवालसंगस्स य गणिपिडेगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, xx xxx चठल्ये अगे, एगे अज्झयणे, एगे सुयक्खंथे, एगे उद्देसणकाले, एगे समुद्देसणकाले एगे चयाले पदसहस्से। . , : -समवायाङ्ग:-समवायागमें खसिद्धान्त, परसिद्धान्त,ख-परसिद्धान्त, और एक संख्यासे लगा कर अधिकसख्यातक पदार्थोंका परिगणन एवोत्तरिक, परिवृद्धिपूर्वक प्रतिपादन है, अर्थात् प्रथम एकसंख्यक पदार्थोका निरूपण करके फिर द्विसंख्यक पदार्थों का वृत्तान्त है। इस क्रमसे प्रतिपादन करने के वाद द्वादशाग गणिपिटकके पर्यवोंका प्रतिपादन किया गया है। चतुर्थ समवाय ( अग.) से एक अध्याय, एक श्रुत स्कन्ध, एक उद्देशन काल, एक समुद्देशन कालं, और एक लाख चवालिशहजार पद संख्या है। .. .
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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