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________________ संस्कृतटीका- हिन्दी-गुर्जर भाषान्तरसहिता १९५ छे, तेथी प्रभुना अनुयायिओनुं पण ए कर्तव्य छे के तेओ पण कषायने मूके; दशवैकालिकमा कह्युं छे के - "क्रोध मान माया लोभ पाप वृद्धि करनार छे, जो हित चाहता हो तो चारे कषायोनो त्याग करो !” # आ चारे कषायो अनन्तदोष वधारनार छे, तो पण तेनामा एक एक मुख्य दोष छे, जेमके - क्रोध प्रीतिनो मान विनयनो, माया-कपट मित्रतानो अने लोभ प्रेम-विनय अने मित्रतानो नाश करे छे । ; तेने दूर करवाना उपाय - क्रोधने शान्ति थी, मानने नम्रता राखवाथी, मायाने उदार सरळताथी, अने लोभ सन्तोषथी दूर करं नहि तो ससारमा अनन्तकाल परिभ्रमण करवुं पडशे । क्रोध-माननो निग्रह न कर्यो होय, माया अने लोभमा वृद्धि करी होय तो आ चारे कषायो तारा माटे संसार जाळनी अनन्त वृद्धि करशे 1 कषायत्यागनुं फल – उत्तराध्ययनना २९ मा अध्ययनमा गौत्तमस्वामी प्रश्न पूछे छे के हे भगवन् ! कषायना त्यागथी जीव शुं पामे छे ? गौत्तम ! कषाय त्यागथी वीतराग भाव उत्पन्न थाय छे अने वीतरागभावने पामेला जीव ने सुखदु ख समान बने छे । वीतरागतानुं फल - वीतरागपणाथी शुं पामे छे ? गौत्तम ! निरासक्तिथी स्नेह बंधन तथा तृष्णा बंधनने ते जीव छेदी नाखे छे, तथा मनोज्ञ अने अमनोज्ञ शब्दरूप-रस- गन्ध-स्पर्श इत्यादि विषयोमा वैराग्य- विरक्ति -त्यागभावने पाने छे । C अलग २ कषाय जयनुं फल - हे पूज्य ! क्रोधना विजयथी आ जीब शु पामे छे ? गौतम ! क्रोध विजयथी जीव क्षमाना गुणने प्रगटावे छे, क्रोधथी उत्पन्न थता कर्मोने बाघतो नथी । अने पहेला वाध्या होय तेने खपावे छे, शान्तिथी परिषह जीतवानो अभ्यास तथा सहिष्णुता विगेरे विगेरे गुणो उत्पन्न थाय छे J हे पूज्य ! मानना विजयथी जीव शुं पामे छे ? मानना विजयथी निरभिमानता या मृदुताना अपूर्वगुणने प्रगटावे छे, अने मानजन्य कर्मने बांधतो नथी, अने पहेलां जे बंधार्युं छे तेनी निर्जरा करे छे, मृदुताथी जीव शुं पामे छ ? तेनाथी जीव अभिमान रहित थाय छे, अने कोमल मृदुताने प्राप्त करी जाति-कुल-बल-रूप-तप-ज्ञानलाभ अने ऐश्वर्य ए आठ प्रकारना मद रूपं शत्रुनो संहार करे छे,. ご
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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