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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १७९ इतो, ते पण लिच्छवि वंशनोज हतो, आ बने वातो ज्ञातृजाति लिच्छविओनी एक शाखा हती, एम सावित करे छे । । । । (४) कुंडग्रामनी पासे विदेहनी राजधानी वैशाली नगरी हती, कुंडग्राम आ नगरीना एक परा जेवी हती । भगवान् महावीरउँ 'वैशालिक' नाम पण भा नगरीना नामथी पच्यु हतुं, विशाला नगरीमा सिंह सेनापति नामे जे निग्रन्थ धावक लिच्छवि रहतो हतो, ते भगवान् महावीरनी सलाह न मानीने महात्मा बुद्धनी पासे गयो हतो, भाथी स्पष्ट जणाय छ के महात्मा बुद्ध अने भगवान् महावीर बने एकी वखते वैशालीमा हता। . . ऊपरना उल्लेखमा जे 'नातिका' शब्द लखेलो छे, ते शब्दनुं मूल घणांओए 'नादिका' कहेलं छ, भने तेनो अर्थ 'ते नामना जलाशयपर वसेलु एक गाम एवो करे छे, पण तेमा तथ्य नथी, हर्मन जेकोयी [जुभो हर्मन जेकोवी कृत Sacred Books The East नामे. ग्रन्थमाळामा . प्रकाशित 'आचारांग भने कल्पसूत्र' नामे जैन सूत्रोना अनुवादनी प्रस्तावना, पार्नु १०] मूल शब्द 'नातिका' ज छे, अने ते ज्ञातृवंशना क्षत्रियोनो वाचक छ तेम सुमर्थन करे छ। . ___ आ 'नातिका' शब्द पर त्रिपिटकाचार्य श्रीयुत राहुल सांकृत्यायने विशेष प्रकाश पाठ्यो छे, तेमणे पोताना 'वुद्धचर्या'* नामे हिन्दी पुस्तकमा 'नादिका': नो मूल शब्द 'नाटिका-ज्ञातृका' वतावेल छे, अने 'ज्ञातृका' शब्द ज्ञातृवंशना * ते वसते घणी मोटी निर्गन्ध परिषद् (जैन साधुओनी सभा) साथै निप्रन्थ 'नाटपुत्त' (महावीर ) नालंदामा निवास करता हता। . १ नाटपुत्त-ज्ञातृपुत्र, ज्ञातृ लिच्छविओनी एक शाखा इती; के जे वैशालीनी आसपास रहेती हती, ज्ञातृमाथीज वर्तमान 'जथरिया' शब्द बन्यो छे, महावीर तेमज जथरिया ए वनेनुं गोत्र काश्यप छ, आजे पण- जयरिय, भूमिहार ब्राह्मण आ प्रदेशमां मोटी संख्यामां छे, तेमनुं निवास रत्ती परगना; पण ज्ञातृ-नाती-लत्ती रत्ती थी ज वनेलं छे। . . . . -" ' १११ में पाने निग्रन्थ सूत्रनो पण उल्लेख कयों छे के जे सै० नि ४०% १-१८ थी उद्धृत करवामां आव्यो छे ।। . . . . . .,
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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