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________________ .. .. वीरस्तुतिः। , . . : १५८ नगरीमा थी त्यां महात्मा बुद्धने, अवापाली नामे वेश्या अने लिच्छवि क्षत्रिय मळवा आन्या, हता, कोटिग्रामथी महात्मा बुद्ध ज्या 'नातिका' ज्ञातृक लोक रहेता हता, त्या गया हता, अने त्या 'आतिका' (ज्ञातृका) लोकोना ईंटोना घरमा हता। ते स्थाननी पासेज 'अम्बापाली' वन नामे उद्यान हतुं जे अम्वापालीए बुद्ध अने' तेमना सघने - समर्पण करेल हतुं । त्याथी महात्मा बुद्ध वैशाली गया अने यां सिंह नामे सेनापति के जे निग्रन्थोनो श्रावक हतो, तेने पोतानो अनुयायी वनाव्यो । सिंह सेनापति महात्मा बुद्धने मळवा जता पहेला 'निग्रन्थ' ज्ञातृपुत्र महावीर प्रभुनी पासे अनुज्ञा लेवा आव्यो हतो। सारे भगवान् महावीरे सिंह. सेनापतिने "तु क्रियावादी होवा छता अक्रियावादी श्रमण गौतमने मळवा शा माटे जाय छे ?” एम कहीने न जवानुं कयुं हतु । पण ते पोतानी इच्छानुसार श्रमण गौतमनी पासे गयो अने त्या ते श्रमण गौतम बुद्धनो अनुयायी बन्यो ।" ऊपरना उल्लेखथी आपणा विषयने पुष्ट करनारी चार वात विशेष प्रकारे जाणवानी मळे छ। : (१) बौद्धोनुं 'कोटिग्रामज' [वौद्ध ग्रन्थोमा 'कुंडग्राम' नुं नाम 'कोटिग्गाम' अने भगवान् महावीरना 'ज्ञातिपुत्र' ने बदले 'नातिपुत्त लखेल छे। जुओ "भारतका प्राचीन राजवंश" पार्नु ४० लेखक विश्वेश्वरनाथ राय) जैनोनुं 'कुड, ग्राम' जणाय छे, आ वने नामोमां शाब्दिक सरखापणुं छे । ते उपरात ते गामनी नजीक ज्ञातृक ज्ञातृवंशना क्षत्रियोनुं निवासस्थान अने वैशाली नगरी, नजिकपणुं होवाने लीधे 'कुंडंग्राम अने 'कोटिग्राम' बने एकज होवानुं निश्चित थार्य छ । - (२) कोटिग्गामनी पासे ज्ञातृओनें निवासस्थान, भगवान् महावीरनो वंश ज्ञातृवंश हतो, ते वळी वधु पुष्टि करे छ। तेमज कुंडग्रामनी आसपास ज्ञातृक ज्ञातृवंशना क्षत्रियोना खंड=उद्यान हता। अने त्यां ज्ञातृवंशी क्षत्रियो रहेता हता, ते आ वावतने वधु दृढ करे छ। आ 'ज्ञातृक' नो उल्लेख ए विचारनो निर्देश करे छे के आ ज्ञातृक भगवान् महावीरनी जन्म-जातिवाळा ज्ञातृक्षत्रिय हशे। (३) 'ज्ञातृ' जाति “लिच्छवि' ओनी एक शाखा हती [प्रसिद्ध जैन तीयकर महावीरनी माता पण 'लिच्छवि' वंशनीज हती, जुओ 'भारतका प्राचीन राजवंश' पार्नु २७८ ] आ वातनी पुष्टि 'वैशालीना लिच्छवि क्षत्रिय महात्मा बुद्धने मळवा आव्या हता' ते उल्लेखथी मळे छ । भगवान् महावीरनी माता पण लिच्छवि वंशनी हती, भने सिंह सेनापति के जे भगवान महावीरनो श्रावक
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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