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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता १७५ "नाथपुत्त" शब्द प्रयोग जोवामा आवे छे, आ रीते भाषा अने भावनी दृष्टिए 'जोता पण आ बधा अलग अलग नामो मूळ 'ज्ञातृपुत्र''शब्दमा मळी जाय छ । आ वधा नामो "ज्ञातृपुत्र" शब्दथी वनेला छे ते नि शंक छ । प्राचीन काळमां वशना नामथी परिचय आपवानी प्रथा होवाने लीधे भगवान् महावीरनो जीवन विषयक परिचय श्रीजिनागमोमा तेमज बौद्धागमोमा 'नात्पुत्त' अथवा 'नाथपुत्त' शब्दथी आपवामा आव्यो छे। तेमज भगवान् महावीरना शिष्योनो पण परिचय "नातपुत्तीय" अथवा "नाथपुत्तीय" ए शब्दथी विशेष करीने आपवामा आव्यो छे. श्रीजिनागमना १२ अगोमा छटुं अग "णायधम्मकहाओ" छ। तेमां आवेल "णाय” शब्द पण भगवान् महावीरना वंशवाचक 'नायपुत्त' नी साथे गाढ संवन्ध राखे छ । प्राकृतमा 'न' नो 'ण' थाय छ। आ अंगनो गुजराती अनुवाद "भगवान् महावीरनी धर्मकथाओ" एम करवामा आव्यो छे। आ अगनो परिचय श्रीसमवायागसूत्रमा आपेल छ । तेमा बताव्यु छ के "आ अगमा ज्ञाताओना नगर-उद्यान-माता पिता वगेरेनो परिचय आपवामां आवशे।" टीकाकारे ज्ञाताओनो उदाहरणभूत अर्थ को छ । परन्तु ज्ञाता एटले 'ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय ए अर्थ पूर्वापर विचारता निश्चित थाय छे। भंगवान् महावीरनो परिचय श्रीजिनागमोमां 'नायपुत्त' ज्ञातपुत्र सिवायनां घणां नामोथी आपवामा आव्यो छे, तो पण त्यां 'नायपुत्त' शब्दनी विशेष प्रधानताछे । घणा प्राचीन सूत्रोंमा भगवान् महावीर प्रभुना गुणग्राम 'नायपुत्त' शब्दथी करवामा आव्या छे जेमके - "जे भगवान् “ज्ञातपुत्रना" वचनो पर पूर्ण विश्वास राखे छे, ते कोई 'वस्तुनुं संग्रह करता नथी" १८ "प्राणीमाननी रक्षा करवावाळा "ज्ञातपुत्र" महावीर प्रभुए वस्त्र पात्रने परिग्रह नथी कस्यो, पण मूर्छ या ममत्वभावने ज परिग्रह कह्यो छे, एम महर्षिओए कहां छे।" २१ [दशकालिक अ० ६] "ज्ञातपुत्र" महावीर प्रभुए कह्यु छ के-मर्यादामा रहेनार साधु आ दोषने सारी रीते जोई ने जरा पण कपट पूर्वक जुठ न बोले " 1 "आ दोषने जोइने निग्रन्थ रात्रि भोजननो त्याग करे, कारणके "ज्ञातपुने" आना प्रत्यक्ष दोष वताव्या छ।" (दशवकालिक० अ० ६) . अनुत्तर ज्ञानी अने अनुत्तर दर्शन युक्त अर्हन् प्रभु 'ज्ञातपुत्र' महावीर प्रभु विशाला नगरीमा आ.रीते व्याख्यान करता हता।
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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