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________________ स्तवके सम्बन्ध निक्षेपादि स्वव-स्तुति के नाम आदि चार निक्षेप हैं, जिसमें नाम और स्थापनाको पूर्ववत् जानना योग्य है। द्रव्य 'स्तव' ज्ञ शरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त जो पांच अभिगमकी मर्यादा करके तीर्थकर भगवान्का सत्कार करना है और भाव स्खवतो जहा गुण विद्यमान हों उनका उपयोग पूर्वक कीर्तन करना है। अव प्रथम सूत्रके संस्पर्श द्वारसे सम्पूर्ण अध्यायका संवन्ध प्रतिपादन करनेवाली गाथाका वर्णन करते हैं। यथा- "पुच्छिसु जंवू णामो अजसुहम्मा तमो कहेसीय। एव महप्पा वीरो जयमाह तहा जएजाहि ॥ भावार्थ-जम्बूस्वामीने आर्य सुधास्वामीसे श्रीमान् महावीर प्रभुके गुणों के सम्बन्धमें प्रश्न किया है। सुधाखामीने 'भगवान् ऐसे गुणोंसे युक्त थे' यह कहा और उस भगवान्ने इस प्रकार संसारको जीतनेके वोध दिये अतः आप भी भगवान्की तरह ससार जीतनेका प्रयत्न करें। : अधुना निक्षेपके पश्चात् सूत्रानुगममें अस्खलितादि गुणयुक्त सूत्र कहने योग्य है और वह यह है
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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