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________________ १५२ . . , वीरस्तुतिः । - - इससे प्राचीन कालमें 'वंशवाचक' -नामसे परिचय देनेकी प्रथा स्पष्ट जानी जा सकती है। महात्मा बुद्ध भी उनके मूल नाम "सिद्धार्थ" की अपेक्षा उनके 'गोत्रसूचक' नाम "गौतम" के नाम से और 'वंशसूचक' "शाक्यपुत्र" के नामसे अधिक प्रसिद्ध थे। भगवान् महावीरका वंश 'ज्ञातृवंश' था और इस ज्ञातृवंशसे उनका 'वंशसूचक' नाम 'नायपुत्त' प्रसिद्ध हो गया, जिसे हम ऊपर देख गए हैं। मगर इस वंशका अगाडी चलकर कितना विस्तार और कितना विनाश हुआ इसका इतिहास प्राय. लुप्त है । इस लुप्तप्राय. इतिहास का शोध करना 'अत्यावश्यक' है । इस इतिहास को तलाश करने के लिए हमारे पास वौद्ध साहित्य एक अनन्य साधन है। भगवान् 'महावीर' और 'महात्मा बुद्ध' ये दोनों एक समयके समकालीन धर्मक्रान्तिकारी महापुरुष होगए हैं। तदुपरान्त वे दोनों एक ही देशके निकटस्थ प्रान्तके निवासी राजवंशी पुरुष थे इन कारणोंको लेकर महात्मा बुद्धको एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें विहार करते हुए भगवान् महावीरकी जन्म भूमिमें जानेका और वहा भगवान् महावीरके वश-सम्बन्धी लोगोंके साथ वार्तालाप करनेका प्रसग प्राप्त होना यह एक स्वाभाविक वात है। . 'वुद्धपिटक' के 'महावग्ग' नामक सूत्र में म० बुद्ध भगवान् महावीरकी जन्मभूमि कुण्डग्राममें 'और उसके पासमें 'ज्ञातृको' के ग्रामोंमे एवं वैशालि नगर जानेका और वहा 'निर्ग्रन्थ श्रावक' 'सिंह' सेनापतिके साथ वातचीत करनेका उल्लेख मिलता है। इस उल्लेखके आधार पर भगवान् महावीर का 'ज्ञातृवंश' और उनकी जन्मभूमिके विपयमें हमको बहुत कुछ परिचय मिलेगा। इसी धारणासे ये उल्लेख उतारने उचित प्रतीत हुए। *अथ भगवान् जहा कोटिग्राम था वहां गए, वहा भगवान् कोटिग्राम मे विहार करते थे, * देखो, विनयपिटक महावग्ग पृ० २४१-'कोटिग्राम,
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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