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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ८५ "वर्णों द्विजादौ शुक्लादावित्यमरः वीरपक्षे भूरि-भूतं बहुलं "प्रचुरं प्रभूतं प्राज्यं मदनं बहुलं बहु, पुरुहूः पुरुभूयिष्टं, स्फारं भूयश्च भूरि चेत्यमरः" । वर्णः परिस्तोमो यस्य स भूरिवर्णः, दीर्घसिंहासनस्य प्रवेणीति । "प्रवेण्यास्तरणं वर्णः परिस्तोमः कुथो द्वयोरित्यमरः" । अथवा मूरिः वर्ण काञ्चनं तस्येव वर्णो (कान्तिः) यस्य स तथा। "वर्णेऽपि भूरीत्यमरः" । अथवा भूरिर्बहुलो, वर्णःस्तुतिर्यस्य स तथा । "स्तुतिर्वर्णं तु वाऽक्षर इत्यमरः" । "वर्णः स्तुतौ ना इति मेदिनी"। अथ किं भूतः स मेरुमनोरमश्वारुःशोमनः, "सुन्दरं रुचिरं चारु, सुषमं साधुशोभनम् ; कान्तं मनोरममित्यमरः" । एवमेव वीरोऽप्येवं विधो जगति मनोरमः । पुनश्च अर्चिःकिरणस्तस्य माला विद्यते यस्य सोऽर्चिमाली सूर्य इव द्योतयति दिश इति शेषः । “दीधितिर्भानुरुसोंऽशुर्गभस्तिः किरणः करः । पादो रुचिर्मरीचिर्मा तेजोचिरिति धनंजयः" ॥ १३ ॥ अन्वयार्थ-[महीइ] पृथ्वीके मज्झम्मि] बीचमें [ठिये] स्थित [णगिंदे] पर्वतोमें प्रधान सुमेरु [पन्नायते ] लोकमें उत्कृष्ट रूपसे जाना जाता है, तथा [ सूरियसुद्धलेस्से] सूर्यके सदृश शुद्ध तेजवाला [एवं ] इसी भांतिकी [सिरीए] लक्ष्मीसे [उ] अधिकाधिक [ भूरिवने] विचित्र रनों से शोभित रहनेके कारण नानावर्ण युक्त और [मणोरमे ] मनको मोहित करने वाले [अधिमाली ] सूर्यकी तरह [ जोयइ ] दशों दिशाओंको प्रकाशित करता है ॥ १३ ॥ भावार्थ-रसप्रभा पृथ्वीके मध्यभागमें जम्बू द्वीप है, और इसके बीचमें सब पर्वतोंमें प्रधान सुमेरु पर्वत है, यद्यपि सुमेरु पर्वत दोनों धातृ खंड और दोनों पुष्करार्द्ध द्वीपमें भी हैं, किन्तु उनकी उंचाई ८५ हजार योजन ही है, और जम्बूद्वीपके मध्यभागस्थ सुमेरु एक लाख योजन ऊंचा है, अतः यह सवमें प्रधान गिनाजाता है। इसी प्रकार ऋषि-मुनि और महात्माओंमें महावीर प्रधान थे, सुमेरु पर सूर्यकी कान्ति पड़ने पर जैसे वह चमकने लगता है वैसे ही
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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