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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ८१ जगह नन्दन वन आता है। उससे ६२००० योजन ऊपर सौमनस वन है। उससे ३६००० योजन ऊपर शिखरके पास पंडकवन है। ये सुमेरुके चार सघन वन हैं। यहां पर वडे २ महेन्द्र और देव गण आकर मनोहर खेल कूद करते हैं । उसका सौन्दर्य निहारनेके लिए स्वर्गसे चल कर आते हैं । इसी भाति भगवान् भी सुवर्णके रंग जैसे सुन्दर हैं। इनके पास ज्ञान, दर्शन, चरित्र, तप तथा तत्व, पदार्थ, नय, निक्षेपादि चार सुन्दर विचार स्थल हैं, जिनमें आत्माका अनुपम आनन्द आता है । और इस क्रीडास्थली पर भव्यं जन खावलम्बी होकर सहजानन्द लूटते हैं ॥ ११॥ गुजराती अनुवाद-ते मेरु पर्वत ऊर्ध्व दिशामा आकाशने स्पर्शी रह्यो छे, एटले ऊर्ध्वलोक-अधोलोक अने. मनुष्यलोकने स्पर्शी रह्यो छे, जे मेरु पर्वतनी आसपास सूर्यप्रमुख ज्योतिषी-देवो प्रदक्षिणा करी रया छ । ते मेरुपर्वत सुवर्णना जेवी कान्तिवाळो छ। तेनी चारे बाजुए घणा वनोमा चार मुख्य सुंदर वन छे। समतल भूमिपर भद्रशाल वन छे, त्याथी ५०० योजन ऊपर जतां नन्दनवन आवे छे, त्याथी ६२००० योजन ऊंचे सौमनस वन छ। त्याथी ३६००० योजन ऊंचे शिखरनी पासे पंडकवन छे। मेरु पर्चेतना आ चार नन्दनवना मोटा इन्द्रो पण आवीने इच्छानुसार मनोहर क्रीडा करे छ। तेनुं मनोमोहक सौन्दर्य जोवाने खर्गमा थी आवे छे। ते रीते भगवान् महावीर प्रभु पण सुवर्ण समान सुदर छ। तेमनी पासे ज्ञान-दर्शन-चरित्र तथा तप तेमज तत्व-पदार्थ-नय-निक्षेपादि चार सुन्दर विचार स्थल छ । जेमा आत्माने मानन्द मावे छ । तेमज ते क्रीडा स्थल पर भव्य जनो खावलम्बी बनीने सहजानन्द लूटे छै ॥ ११॥ से पधए सहमहप्पगासे, ... ! . विरायई कंचणमठ्ठवन्ने । “. . . . . अणुत्तरे गिरिसु य पवदुग्गे, . . गिरिवरे से.जलिएव भोमे ॥ १२॥ वीर. ६
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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