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________________ ७६ गया था कि यह सभासद होनेपर प्रजापक्षके विरुद्ध अवश्य बोलेगा और इससे हमारे पक्षकी पुष्टि होगी। परन्तु पीछे उन्हें इस विषयमें घोर निराशा हुई, इससे उन्होंने उससे बिलकुल सम्बन्ध छोड़ दिया। __ अब रहा लिबरलदल । अबके इस दलकी ओरसे उसे वोट मिलना चाहिए थे; परन्तु उन्होंने भी इसे पसन्द न किया । क्योंक वह देख चुका था कि जिन सुधारोंका पोषक कोई भी नहीं होता हैअर्थात् जिन्हें सुधारप्रिय लिबरलदल भी गलेसे नीचे नहीं उतार सकता है, उन्हींका पक्ष लेकर यह लड़ता है। बहुतसे लिबरलोंको इसका जमैकाके गवर्नरके विरुद्ध लड़ना भी बुरा लगा था। इसके सिवा उसने सबसे बड़ा अपराध यह किया था कि भारतहितैषी ब्राडला साहबके चुनावमें आर्थिक सहायता दी थी। ऐसे घोर नास्तिकको सहायता ! ऐसी बात कैसे बरदाश्त हो सकती थी ? गरज यह कि लिबरल भी उससे उदासीन हो गये। मि० ब्राडला मजदूर-दलकी ओरसे उम्मेदवार हुए थे। मिलने एक तो प्रायः सभी मजदूर-दलके उम्मेदवारोंको सहायता दी थी; दूसरे ब्राडलाका व्याख्यान सुनकर उसे विश्वास हो गया था कि वे बुद्धिमान हैं, निष्पक्ष हैं, लोगोंकी प्रसन्नता अप्रसन्नताकी ओरसे लापरवा हैं, माल्थसके प्रजावृद्धिविरुद्ध सिद्धान्तको वे पसन्द करते हैं और लोकमतके विरुद्ध कहनेका उनमें साहस है। इस कारण उसने उनकी सहायता करना अपना कर्तव्य समझा। इसी सहायतासे मिल सबकी आँखोंका शूल हो गया । टोरीपक्षवालोंने तो मिलका चुनाव न होने पावे, इसके लिए अपना बहुतसा रुपया खर्च करने में भी सङ्कोच न किया । इस तरह मिलको इस दूसरे चुनावमें पराजित होना पड़ा।
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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