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________________ जबतक मिल पारलियामेंटका मेम्बर रहा तबतक उसे केवल छुट्टाके समय लेखादि लिखनेका अवकाश मिलता था। इस अवकाशमें उसने केवल दो निबन्ध लिखे-एक तो ' इंग्लैंड और आयलैंड' नामका, जिसका उल्लेख ऊपर हो चुका है और दूसरा 'प्लेटो' के सिद्धान्तपर। इसके सिवा जब उसे स्काटलैंडके सेंट एंड्यूज नामके विश्वविद्यालयने अपना रेक्टर चुना तब उसने एक समयोचित और सारगर्भित व्याख्यानकी भी रचना की । उच्चशिक्षा किस प्रकारसे देनी चाहिए, उसमें कौन कौनसे विषय आने चाहिए, किस किस विषयके पढ़नेसे क्या क्या लाभ होता है, अधिकलाभ होनेके लिए कौनसी शिक्षापद्धति उपयोगी है इत्यादि बातोंपर आजतक उसने जो कुछ सिद्धान्त निश्चित कर रक्खे थे, इस व्याख्यानमें उनका पूरा पूरा विवेचन किया । शास्त्रीय विषय और प्राचीन भाषायें सुशिक्षा और सुसंस्कारके लिए कितनी आवश्यक हैं, यह भी उसने अच्छी तरहसे समझा दिया । नये चुनावमें असफलता। जिस पारलियामेंटने सुधारका कानून पास किया था-वह सन् १८६८ की वर्षाऋतुमें टूट गई और फिरसे नया चुनाव किया गया। इस चुनावके समय मिलको वेस्ट मिनिस्टरमें सफलता प्राप्त न हुई। उसे वेस्ट मिनिस्टरवालोंने नहीं चुना, परन्तु इससे मिलको कुछ आश्चर्य न हुआ । क्योंकि उसके जैसे स्वतंत्र विचारोंका मनुष्य पहले एक बार चुन लिया गना था, यही बड़े आश्चर्यकी बात थी। ___अबकी दफे मिलके प्रतिपक्षियोंने बड़ा जोर बाँधा। पहली दफे जो कन्सरवोटव इसक अनुकूल अथवा मध्यस्थ थे, वे भी इस दफे उसके विरुद्ध हो गये । मिलने अपने एक ग्रन्थमें प्रजासत्ताक राज्यपद्धतिके कुछ दोष दिखलाये थे, इस लिए पहली दफे उन्हें विश्वास हो
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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