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________________ अधिक होता है। ऐसी अवस्थामें किसी संयुक्त-रचनामें निश्चयपूर्वक ऐसा विभाग नहीं किया जा सकता कि अमुक भाग एकका और अमुक दूसरेका है । अतएव मिलके उन ग्रन्थोंके विषयमें जो कि मिसेस टेलरसे मित्रताका और विवाहका सम्बन्ध होनेपर रचे गये हैं यही कहा जा सकता है कि वे दोनोंहीके बनाये हुए हैं-अर्थात् उनमें जो कुछ लिखा गया है वह दोनोंके मस्तकोंकी लगभग बराबर बराबर कृति है। इससे अधिक निश्चित और स्पष्ट विभाग उनका नहीं किया जा सकता । हाँ, कई बातें ऐसी भी हैं जिसके विषयमें इससे कुछ और भी अधिक स्पष्ट कहा जा सकता है । इन दोनाका संयुक्त रचनामें जो कल्पनायें या जो जो अंश अतिशय महत्त्वके हैं, जिनका परिणाम अतिशय फलप्रद हुआ है, और जिनके योगसे उस रचनाकी प्रसिद्धि अधिक हुई है, वे सब कल्पनायें या अंश मिसेस टेलरके मस्तकसे उत्पन्न हुए हैं। अब यदि यह पूछा जाय कि उन कल्पनाओं और अंशोंमें मिलकी कृति कितनी थी ? तो उसका उत्तर यह है कि उसने जिस प्रकार अपने पूर्वके ग्रन्थकारोंके विचार पढ़कर और मननकर उनका अपनी विचारपरम्परासे तादात्म्य कर लिया था, उसी प्रकार उन कल्पनाओं या अंशोंका भी कर डाला था । अर्थात् मिसेस टेलरकी कल्पनाओं या विचारोंको अच्छी तरह समझकर उन्हें सुगम रीतिसे लेखबद्ध करनेका कार्य उसने किया था और इस विषयमें उसकी यही कृति थी । वालपनसे ही उसको इस बात का अनुभव था कि मैं अपने मस्तकको नवीन विचार उत्पन्न करनेकी अपेक्षा दूसरोंके विचारोंको सर्वसाधारणके समझने योग्य सुगम कर देनेका कार्य बहुत सफलताके साथ कर सकता हूँ। उसे खुद ही इस बातका विश्वास न था कि मेरी मस्तक न्यायशास्त्र, आत्मशास्त्र और अर्थशास्त्र आदि
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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