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________________ ४६ रहा है, इसका कारण मनुष्यकी परिस्थिति है। अर्थात् उसके आसपासके रीति-रवाज, विचार और अन्य विश्वास आदि ऐसे हैं कि उनके कारण वह स्वार्थपर बन जाता है । यह नहीं कि मनुष्य-स्वभावका बीज ही ऐसा है। बीजमें कोई दोष नहीं है । कारण अच्छे मिलेते रहें तो सम्भव है कि वर्तमान मनुष्य-स्वभाव बदल जाय । ___ जब मिलकी मानसिक उन्नति हो रही थी तब एक बार ऐसा मौका आया था कि वह सामाजिक और राजकीय विषयोंमें प्रतिबन्ध या बन्धन होनेका पक्षपाती हो जाता और एक बार इससे विरुद्ध, बन्धनका सर्वथा विरोधी बन जाता । इन दोनों मौकों पर मिसेस टेलरने उसे बहुत संभाला और उसका जो भ्रम था, उसे निकाल दिया। एक तो मिल प्रत्येक मनुष्यसे नई बात सीखनेके लिये सदा उद्यत और उत्सुक रहा करता था और दूसरे उसकी यह भी आदत थी कि वह जिस नई बातको-जिस नये मतको-सीखता था उसे पुरानेसे मिला देता था । उसमें ये दो बातें ऐसी थीं कि यदि मिसेस टेलर उसकी लगाम नहीं पकड़ती तो उसके लड़कपनके विचारोंमें आश्चर्य नहीं कि व्यर्थ परिवर्तन हो जाता । वह उसे समझा देती थी कि जुदा जुदा मतोंका जुदा जुदा दृष्टिसे क्या महत्त्व है । इससे नये सीखे या सुने हुए मतोंको वह निरर्थक महत्त्व देनेकी ओर प्रवृत्त नहीं होने पाया और धैर्य के साथ प्रत्येक मतका महत्त्व जुदा जुदा दृष्टिसे -समझने सोचने लगा। अर्थशास्त्रकी रचना और उसका प्रचार । __ मिलने सन् १८४५ में 'अर्थशास्त्र ' नामक ग्रन्थका लिखना प्रारम्भ करके उसे सन् १८४७ में समाप्त कर दिया । इस ग्रन्थकी
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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