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________________ ३ धार्मिक-सरकारकी ओरसे जो पादरियोंका जुदा महकमा कायम है वह सत्य धर्मसे घृणा उत्पन्न करानेवाला और उसे भ्रष्ट करनेवाला है । इसलिये उसे तोड़ देना चाहिये। ४ आत्मज्ञान-मनुष्योंका स्वभाव उनकी चारों ओरकी स्थितियों के अनुसार बनता है। इसलिये यदि मनुष्योंकी परिस्थितिका सुधार किया जायगा तो उनकी नैतिक और बौद्धिक स्थिति भी सुधरती जायगी। इन विषयोंमें सबसे अधिक प्रधानता राजकीय विषयोंकी रहती थी। वेस्ट मिनिस्टर रिव्यूके लेख और लोकमत । वेस्ट मिनिस्टर रिव्यूके लेख उस समयकी साधारण प्रजाको और दोनों राजकीय पक्ष (टोरी और लिबरल) वालोंको बिलकुल पसन्द न आते थे । बेन्थामके उपयोगिता-तत्त्वके विषयमें कहा जाता था कि केवल उपयुक्ततातत्त्वकी ओर लक्ष्य रखकर किसी बातको अच्छा या बुरा ठहराना मूर्खता है। उसमें उच्च प्रकारके मनोभावोंके लिये बिलकुल अवकाश नहीं है । अर्थशास्त्रके नियमोंको लोग 'निर्दय' कहते थे और माल्थसका जो प्रजाकी वृद्धिके विरुद्ध मत था उसे घृणित बतलाते थे। इसके विरुद्ध बेन्थामके शिष्य तथा उसके मतके अनुयायी उन्हें यह उत्तर देते थे कि तुम केवल मनोभावोंके गुलाम हो । तुम्हारा कथन केवल आलंकारिक है। तुम्हारी इस फिजूलकी बक बकमें कुछ सार नहीं है। बेन्थमके मतका बुरा असर । बेन्थामके सिद्धान्तका एक असर अच्छा नहीं हुआ। उसके अनुयायियोंने मनुष्यस्वभावके एक महत्त्वपूर्ण अंगको अर्थात् मनोभावको एक
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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