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________________ या दबावकी परवा न करके स्वस्थता और स्वन्त्रतासे लिखे जाते हैं। जो बात लेखकको युक्तिसंगत और सत्य जंचेगी उसीको वह निर्भयतासे लिखेगा। और दूसरा यह कि उदरनिर्वाहका स्वतंत्र उद्योग ग्रन्थरचनाक परिश्रमसे थके हुए मस्तकको एक प्रकारकी विश्रान्तिका कारण होता है । इनके सिवाय एक लाभ यह भी होता है कि लेखकको दूसरा उद्योग करनेसे व्यावहारिक बातोंका परिचय हो जाता है और इससे उसके विचारोंके काल्पनिक स्वरूपको व्यावहारिकत्व प्राप्त हो जाता है । उसके प्रतिपादन किये हुए विचार ऐसे होते हैं जो व्यवहारमें आसकते हैं-केवल ग्रन्थमें लिखे रहने योग्य नहीं होते । क्योंकि व्यवहारका प्रत्यक्षज्ञान या अनुभव होनेसे वह यह समझने लगता है कि अमुक सिद्धान्तका प्रचार व्यवहारमें हो सकता है या नहीं और उसके प्रचार- कौन कौन कठिनाइयाँ आ सकती हैं। जिन लेखकों या तत्त्ववेत्ताओंको व्यवहारका प्रत्यक्ष परिचय नहीं होता वे अपने कल्पनासाम्राज्यमें ही मस्त रहते हैं और खयाली पुलाव पकाया करते हैं। अपने सिद्धान्तोंका प्रतिपादन करते समय उन्हें व्यावहारिक सुभीतों और कठिनाइयोंका खयाल ही नहीं आता। इससे उनके सिद्धान्तोंका केवल यही उपयोग होता है कि लोग उन्हें पढ़ लेवें। दूसरे उद्योग करनेवाले विद्वानोंके ग्रन्थों या लेखोंमें यह दोष नहीं रहने पाता । कल्पना और व्यवहारका विरोध उनके लेखोमें धीरे धीरे कम हो जाता है। लेख लिखनेका प्रारंभ और एक नवीन मासिकपत्र । मिलने जब अपना चित्त अध्ययनकी ओरसे हटाकर लेखनकी ओर लगाया तब पहले तो उसने अपने लेख कल्पित नाम दे देकर समाचारपत्रोंमें प्रकाशित कराये । इसके बाद जब उसे बोध हो गया कि
SR No.010689
Book TitleJohn Stuart Mil Jivan Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1921
Total Pages84
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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