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________________ मन भी धवल रखिए ! कार्य हो गया। यद्यपि मैंने अपनी इच्छा से उनकी वाणी नहीं सुनी, अनिच्छा पूर्वक पर-वश सुनने में आ गई। पर हुआ तो यह कार्य पिता की आज्ञा के प्रतिकूल ही है। अब वह ज्यों-ज्यों उन सुनी बातों को भूलने का प्रयत्न करने लगा, त्यों-त्यों वे हृदय में और भी अधिक घर करने लगीं। भाई, मनुष्य की प्रकृति ही ऐसी है कि वह जिस बात को याद करना चाहे, वह याद नहीं होती। और वह जिसे भूलना चाहे, तो उसे भूल नहीं सकता। अतः उसे वे चारों बातें याद हो गई। __इस प्रकार वह रोहिणिया चोर जब दुविधा में पड़ा हुआ जा रहा था, तभी अभयकुमार घोड़े पर चढे हुए भगवान के दर्शन को आये । उनको दृष्टि सहसा रोहिणिया चोर पर पड़ गई, मानों परिन्दों को दाना दृष्टि गोचर हो गया हो। उसे देखते ही उन्हें विश्वास हो गया कि नगर-भर में तहलका मचानेवाला चोर यही है । अत्त वे तुरन्त घोड़े पर से उत्तरे और उसका हाथ पकड़ लिया । यौर उससे पूछा-तेरा नाम क्या है ? कहां रहता है और क्या धन्धा करता है ? रोहिणिया मन में विचारने लगा कि आज तो मैं चक्कर में आगया हूं। मेरे वापने मुझे शिक्षा दी थी कि भगवान महावीर की वाणी मत सुनना । परन्तु नहीं चाहते हुए भी वह मेरे कानों में पड़ गई है, अतः आज मैं अभयकुमार के हाथ पकड़ा गया ! अरे, अन्य पूरुप तो दूध में से मक्खन निकालते हैं। परन्तु ये तो पानी में से भी मक्खन निकालते हैं। अब वह संभला और उसने कहा कि मैं गांव में रहता हूं। इसी प्रकार उसने अपना नाम, बाप का नाम और धंधा भी बता दिया। अभयकुमार उसे पकड़ कर अपने स्थान पर ले आये ! और उन्होने गुप्त रीति से आदमी भेजकर तपास कराया, तो जैसा उसने बतलाया था, सब बातें वैसी की वैसी मिल गई। अब अभयकुमार बड़े विचार में पड़ गये। वे सोचने लगे कि चोर तो यही है। परन्तु जांच करने पर तो यह साहूकार सिद्ध हो रहा है। क्योंकि इसने जैसा अपना परिचय दिया, वह तपासने पर विलकुल सही पाया गया है। परन्तु इसे छोड़ना नहीं है । तब रोहिणिया ने कहा कि आपने मेरे विषय में मव कुछ तपास कर लिया है, तब मुझे तंग क्यों करते हैं और छोड़ते क्यों नहीं हैं ? अभयकुमार ने कहा--भाई, तुम बहुत होशियार आदमी हो । अतः मैं तुम्हें राज्य का कोई अच्छा विभाग सौंपना चाहता हूं। उसके पहिले तुम्हें योग्य शिक्षा (ट्रेनिग) देना पड़ेगी। इसलिए तुम्हें रोक रहा है। इस प्रकार कुष्ठ दिन बीत गये। इस बीच में अभयकुमार ने उसकी और भी उपायों से जांच-पड़ताल की । परन्तु वह उनमें भी खरा सिद्ध हुआ। तब अभयकुमार ने एक नया महल बनवाया। उसकी सजावट बहुत सुन्दर देव-लोक जैसी करायी।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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