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________________ आत्म-विजेता का मार्ग ५६ वचन सुने । चूंकि उनकी बात नई थी, अपूर्व थी – अतः लोगों को उसे सुनने में बड़ा आनन्द आया । भूधरजी भी उनसे प्रभावित हुए और उन्होंने सांसारिक धन-दौलत और स्त्री-पुत्रादि को छोड़कर पोतियाबंध एकपात्री धर्म में दीक्षित हो गये । इनसे पहिले पोरवाल जाति के धन्ना जो भी इस धर्म में दीक्षित हो चुके थे । भूधर जी घूमते हुए मालवे में उनसे मिले। वहीं पर धर्मदास जी महाराज से भी आपका मिलना हुआ । और उनके साथ चर्चा हुई । धर्मदासजी महाराज इसमें नया परिवर्तन लाये और वि० सं० १७२१ की कार्तिकवदी पंचमी के दिन इक्कीस लोगों के साथ आपने अपना नया धर्म परिवर्तन किया । इस प्रकार धर्मदासजी महाराज के शिष्य बने धन्नाजी और उनके शिष्य बने भूधरजी । वे धर्मदासजी महाराज शिष्य के स्थान पर संथारा करके स्वर्ग पधार गये । तत्पश्चात् यह धरनाजी की सम्प्रदाय कहलाने लगी । इन्होंने ग्रामानुग्राम विचरते हुए धर्म का खूब प्रचार किया। उस समय वे अपने बिहार से मालवे की भूमि को पवित्र कर रहे थे ! उस समय इधर जोधपुर महाराज के पास दीवान भंडारी खींवसी, रघुनाथ सिंह जी और दीपसी थे । भंडारी खोवसी जी जोधपुर के दीवान होते हुए भी दिल्ली चले गये । वादशाह का उन पर पूर्ण विश्वास था । खींवसी जो कुछ भी कहते थे, बादशाह उसे पूर्ण सत्य मानता था । बादशाह के कई हुरमाएं थीं। उनमें एक बड़ी मर्जी की थी, बादशाह उस पर बहुत खुश थे। दूसरी कम मर्जी की थी, उसका उन्होंने निरादर कर दिया | बड़ी मर्जीबाली हुरमा के ऊपर कम मर्जीवाली हुरमा की दृष्टि जमी हुई थी कि किसी प्रकार इसको नीचे गिराया जाय । वदकिस्मती से उसकी शहजादी के गर्भ रह गया । इसका पता कम मर्जीवाली वेगम को चल गया । वह मनमें बहुत खुश हुई कि अब मैं उसे नीचे गिरा सकूंगी । अवसर पाकर एक दिन वह वादशाह की सेवा में हाजिर हुई और बोली - हुजूर, में कैसी भी हूं, परन्तु आपको अपने खानदान का ख्याल तो रखना चाहिए। जिस हुरमा के ऊपर आपकी बेहद मिहरवानी है उसकी शहजादी के कारनामें क्या हैं, इसका भी तो आप कुछ ख्याल करें। यह सुनते ही वादशाह शहजादी के महल में गया और सख्त नाराज होते हुए उससे कहा - अरी नीच, तूने यह दुराचार कहां किया ? शहजादी बोली - खुदावन्द, मैंने कोई दुराचार नहीं किया है । वादशाह और भी खफा होकर बोला --अरी, पाप करके भी सिरजोरी करती है और झूठ बोलती है ? यह कहकर उसने दो चार हंटर उसे लगाये । परन्तु वह बराबर यही कहती रही कि मैंने कोई पाप नहीं किया
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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