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________________ प्रवचन - सुधा कुछ समय के बाद एक दिन ऐसा मौका आया कि चौरासी ऊंटों की धाड़ कंटालिए के ऊपर आई । वीरमणि ग्रासिया वड़ा खूंख्वार था । लोगों से ज्ञात हुआ कि आज कंटालिया लुटनेवाला हैं, तो ठाकुर की ओर से सन्देश मिलते ही भूधरजी वहां पहुंचे। उनके साथ घमासान युद्ध किया और कितने ही डाकुओं को इन्होंने मार दिया । जव धाड़ देनेवाले भागने लगे तो भूधर जी ने उनके पीछे अपने घुड़सवारों को लगा दिया | जब इस प्रकार भगाते-मारते जा रहे थे, तब एक ऊंट के तलवार लगी और उसका आधा सिर कट गया । उसका धड़ और सिर लड़खड़ाते देख उनके हृदय से इस मार-काट से घृणा पैदा हो गई । वे विचारने लगे अरे, मैं प्रतिदिन कितने प्राणियों को मारकर उनका खून बहाता हूं? मैंने आज तक कितने मनुष्यों और पशुओं को भारा है ? क्या मुझे इसी प्रकार से बिताना है ? फिर इन बेचारे दीन पशुओं ने हमारा क्या इस प्रकार के युद्धों में तो ये भी मारे जाते हैं ! वस, वैराग्य का निमित्तकारण वन गया । अपना हिंसक जीवन बिगाड़ किया है ? यह दृश्य ही उनके ५८ इस घटना के पश्चात् भूधर जी सोजत पहुंचे और वहां से फिर जोधपुर गये। वहां पर उन्होने महाराज से निवेदन किया - महाराज, सेवक से आज तक जितनी सेवा बन सकी, उतनी हृदय से सहर्ष की । अब मैं आगे सेवा करने में असमर्थ हूं । महाराज ने बहुत आग्रह किया । मगर ये आगे सेवा करने के लिए तैयार नहीं हुए । और महाराज से आज्ञा लेकर नौकरी से अलग हो गये | इतना वचन अवश्य देते आये कि यदि कभी मेरी आवश्यकता प्रतीत हो तो मैं आपकी सेवा में अवश्य उपस्थित हो जाऊंगा । - घर आकर बहुत समय तक यह विचार करते रहे कि आगे अपने जीवन को कैसे सुधारना चाहिए ? इसी विचार से आप एक अच्छे मार्गदर्शक की खोज में निकले कि कोई सन्त महात्मा मार्ग-दर्शक मिल जाय, तो उसकी सेवा में रहकर आत्म-कल्याण करूं ! उस समय यहाँ पर एक पोतियाबंध ( एक पात्री) धर्म चल पड़ा था । उसके अनुयायी केश लुंचन करते और साधु की सब क्रिया भी करते थे । परन्तु कहते यह ये पंचमकाल में साधु हो ही नही सकता है । उनका यह कथन आगम-विरुद्ध था । उस सम्प्रदाय के एक शिष्य कल्याण जी थे । वे घूमते हुए सांचोर पहुंचे । अनेक लोग उनका व्याख्यान सुनने के लिए पहुंचे । भाई, जब कोई नई बात लोगों के सामने आती है, तब लोग विना आमंत्रण के ही वहा पहुंच जाते हैं। भले ही कोई किसी भी धर्म या सम्प्रदाय का अनुयायी क्यों न हो ? लोग पहुँचे और उनके
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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