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________________ ४२ प्रवचन-सुधा चारों मुसाफिरों से कहा--आप लोग अपने माणिक को पहिचान लेवें। उन्होंने पहिचान करके अपने माणिक को उठा लिया। इस प्रकार बिना किसी की खाना-तलाशी लिए और नाम को प्रकट किये बिना ही उनका माणिक उनके पास पहुंच गया। इस समय सारे राज-दरबारी यह जानने को उत्सुक थे कि यह माणिक किस प्रकार निकलवाया गया ? तब राजा ने उस दीवान की पुत्री से पूछाबेटी, तूने कैसे इस माणिक को निकलवाया है ? तब उसने रात वाली कहानी कहकर इन लोगों से पूछा कि उन लोगों में से आप लोग किसे धन्यवाद का पात्र समझते हैं ? तव उनमे से एक ने राक्षस की प्रशंसा की, दूसरे ने धनी और उसके बाल-साथी की प्रशंसा की तीसरे ने स्त्री की और चौथे ने चोरों की प्रशंसा की । महाराज, चोरी की प्रशंसा तो चोर ही कर सकता है । अतः मुझं उस पर सन्देह हुआ और तरकीब से उसे निकलवा लिया। सारे दरवारी लोग सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और महाराज ने भी उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन चारों मुसाफिरों में जो राजा का पुत्र था, उसने पूछा-महाराज, यह किसकी पुत्री है ? दीवान वोला---रात को किसके साथ चौपड़ खेले थे ? उसने कहा-दीवान साहब की पुत्री के साथ । तव उसने अपना परिचय दिया कि मैं अमुक नरेश का राजकुमार हूं और विना टीके के ही रिश्ता मंजूर करता हूँ। राजा ने भी दीवान से कहा-दीवान साह्व, अवसर अच्छा है, विचार कर लो। दीवान ने कहा-महाराज, मैं लड़की की इच्छा के जाने विना कुछ भी नहीं कह सकता हूं। अतः उससे विचार-विमर्श करके सायंकाल इसका उत्तर दंगा। तत्पश्चात् दरवार विसर्जित कर दिया गया और सायंकाल सबको आने के लिए कहा गया। घर जाकर दीवान ने अपनी पुत्री से पूछा --बेटी, राजकुमार के साथ सम्बन्ध के बावत तेरा क्या विचार है ? उसने कहा- यदि आपकी राय है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। सायं काल राजदरवार जुड़ा । दीवान ने जाकर राजा से कहा- कि राजकुमार का प्रस्ताव हमें मंजूर है। उसी समय दीवान ने धूम-धाम के साथ अपनी पुनी का उस राजकुमार के साथ विवाह कर दिया और भर-पूर दहेज देकर उसे विदा कर दिया। इस कहानी के कहने का अभिप्राय यह है कि यदि मनुष्य में बुद्धि है, तो वह कठिन से भी कठिन परिस्थिति में विकट से भी विकट समस्या का समाधान ढूंढ सकता है। पर यह तभी संभव है, जबकि मनुष्य का हृदय शुद्ध हो ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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