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________________ ३२ प्रवनन-सुधा 'संसारोऽपि सारःस्थाद्दम्पत्योरेफफण्ठयोः ।' यदि दम्पती का स्त्री-पुरुप का-एक कण्ठ हो...~एक हृदय हो, जो बात एक सोचे, वही दूसरा करे, जो एक कहे, वहीं दूसरा कहे और जो एक करे, वही दूसरा करे, तो नीतिकार कहता है कि ऐसा होने पर तो यह अनार कहा जाने वाला संसार भी सार युक्त है। किन्तु जहां पर ऐसा एक हृदय नहीं है, जहां पर स्त्री सोचे कि यह मुझे एक नोकर मिल गया है, मैं इसे जैसा नचाऊंगी, इगे वैसा ही नाचना पड़ेगा ! और पुरुप सोचे कि यह मुझे एक नौकरानी मिल गई है, इसे रात-दिन मेरी चाकरी बजानी चाहिए। इस प्रकार की जहा मनोवृत्ति हो, वह स्त्री-पुरुप ना सम्मेलन कहां तक सुखदायी होगा, यह बात आप लोग स्वयं अनुभव करें। आज भारत में सर्वत्र सम्मेलनों को चूम मची हुई है। जातीय, प्रान्तीय, राजकीय और धार्मिक सम्मेलन स्थान-स्थान पर होते ही रहते हैं। उनकी पढ़ें जोरों से तैयारियां होती हैं । और एक-एक सम्मेलन पर लाखों रुपया खर्च होते हैं, बड़ी दौड़-धूप की जाती है। परन्तु जब हम उनका परिणाम देखते है, तब जीरो (शून्य) नजर आता है। इस असफलता का क्या कारण है ? यही वि इनके करने वाले ऊपर से तो सम्मेलनों का आयोजन करते हैं, किन्तु भीतर से उनके हृदय में सम्मिलन का रत्ती भर भी भाव नहीं रहता है। सब अपनी मनमानी मोनोपाली को ही दृढ़ करने मे संलग्न रहते हैं। जब उनका स्वार्थ होता है, तब वे हर एक से मिलेंगे, उसकी खुशामद करेंगे और कहेंगे कि में आपका ही आदमी हूं। किन्तु जैसे ही उनका काम निकला कि फिर वे आंख उठा करके भी उसकी ओर देखने को तैयार नही है। फिर आप बतला कि देश, जाति और धर्म का सुधार कैसे हो? उपकार भूल गये बतूदा के शम्भूमलजी गगारामजी फर्म वाले सेठ छगनमलजी मूथाजिन्होने असह्योग आन्दोलन के समय श्री जयनाराणजी व्यास और उनके साथियो के साथ ऐसी सज्जनता दिखाई कि जिसकी हद नहीं । व्यासजी और उनके साथी जव-जब भी जेल मे गये, तब उन्होंने उनके परिवार वालों के खानेपीने की और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की समुचित व्यवस्था की, उनके घर माहवारी हजारों रुपये भिजवाये और पूरी सार-संभाल की। किन्तु स्वराज्य मिलने पर जब यहां काग्रेसी सरकार बनी और व्यासजी मुख्यमन्त्री बने, तब मुनीम की भूल से हथियारों के लायसेन्स लेने में देर हो गई तो जैतारन के
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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