SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदारता और कृतज्ञता भाइयो, जिसका हृदय उत्तम है और जिसके विचार निरन्तर उन्नत बने रहते है, वह कैसी भी परिस्थिति में जाकर घिर जाय, तो भी वह अपने स्वभाव मे स्थिर बना रहता है, उसमें किसी भी प्रकार का विकार दृष्टिगोचर नही होता है। ऐसे ही पुरुषो को धीर-बीर कहा जाता है। जैसा कि कहा है___ विकार हेतौ सति विक्रियन्ते, येषा न चेतासि त एव धीराः। अर्थात् जिनका चित्त विकार के कारण मिलने पर भी विकार को प्राप्त नही होता है, वे पुरुप ही धीर-वीर कहे जाते है । देखो--जुही, चमेली और मोगरा आदि के फूल हवा आदि के झोके से उडकर किसी कूड़े-कचरे के ढेर पर भी जा पहुँ, तो भी वे अपनी सुगन्ध को नही छोडते हैं । यद्यपि वे स्थान-भ्रष्ट हो गये हैं, तथापि वे जिस किसी भी स्थिति मे पहुचने पर अपने सौरभ को सर्वन बिखेरते ही हैं। ___ अभी आपके सामने बताया गया है कि मैना सुन्दरी उत्तम-गुणवाली और बुद्धिमती है। परन्तु दैवयोग से ऐसा सयोग जुडा कि जहा उसे नहीं जाना चाहिए था, वहा जा पहुची। परन्तु ऐसी विकट परिस्थिति में भी उसका हृदय घबराया नहीं। उसका ध्यान अपन मूल स्थान पर केन्द्रित हुआ और वह विचारने लगी कि यदि मैंने भूतकाल में दान दिया है, शील पाला है और किसी का बुरा नहीं किया है, तो एक दिन ये सव सकट अवश्य दूर हो जावेंगे । और
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy