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________________ जातीय एकता : एक विचारणा वार्तालाप भी मत करो। भाई, अपने को बचाने के लिए भगवान ने शील की नव वाड़े बताई है और दसवां कोट वताया है, तो ये क्यों बताये ? इसीलिए वताये कि संगम-समागम से मन के बिगड़ने की सम्भावना रहती है। स्त्री का सम्पर्क तो पुरुप मात्र के लिए फिसलने का कारण बताया है। जैसा कि कहा है अङ्गारसदशी नारी नवनीतसमो नर. । तत्तत्सान्निध्य मात्रेण द्रवेत्पुंसां हि मानसम् ।। अर्थात स्त्री की प्रकृति अंगार के समान है और पुरुष का स्वभाव जवनीत (लोनी) के समान है। जैसे अगार के सामीप्य मात्रा से नवनीत पिघल जाता है, उसी प्रकार स्त्री के सम्पर्क मात्र से पुरुपों का मन भी पिघल जाता है । अतः पुरुप को स्त्री के सम्पर्क से दूर ही रहना चाहिए। कुसंगति से कष्ट जैसे साधु के लिए स्त्रीमात्र का सम्पर्क त्याज्य है, उसी प्रकार पुरुप मात्र के लिए परस्त्री का मम्पर्क त्याज्य है। तथा मनुप्य मात्र के लिए कुसंग त्याज्य है। अभी आपके सामने श्रीपाल का व्याख्यान चलता है। सिंहरथ और वीरदमन दोनों भाई थे और साथ में रहने वाले थे। स्वभाव का परीक्षण किये विना राज्य का सारा कारोबार वीरदमन को सौप दिया गया। उसका परिणाम क्या हुआ? यह आप लोगो ने सुना ही है। यदि अभी नहीं सुना है तो आगे सुन लेंगे । वह कुसगतिका ही असर हुआ। देखो--जो उत्तम संगति में रहते हैं, तो उनके विचार भी उत्तम रहते है । जो अधम संगति मे रहते है तो उनके विचार भी अधम रहते है। एक बार सन्तो के प्रतिदिन व्याख्यान सुनतेवाली बाई का एक जगल में रहनेवाली स्त्री के साथ कही जाते हए मार्ग में वृक्ष की छाया के नीचे विश्राम करते हुए मिलाप हो गया। जगल वाली स्त्री ने उस दूसरी बाई से कहा----बहिन, मेरे माथे में बहुत खुजलाहट हो रही है। जू मालूम पडते है, तू जरा देख तो दे। वह उसका माथा देखने लगी और जू मिलने पर उसने उसको हाथ पर रख दिया। उसने उसे तुरन्त मार दिया । उस बाई ने उससे कहा---अरी पगली, यह क्या किया ? वह बोली- यह मुझे खाता था, इसलिए इसे मार दिया। उसने उसका माथा देखना बन्द कर दिया । जू को मारते हुए देखकर उसके रोमाच खड़े हो गये। क्यो पड़े हो गये ? क्योंकि, वह इस प्रकार को कुसंग से दूर रही थी। और
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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