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________________ २६ प्रवचन सुधा पानी कितना ही पड़ जाता, तो वह सूख जाता था । कभी फिसलने का भय नहीं रहता था । परन्तु आज आप लोगों को भाग्यवानी वढ गई है। वह दिमाग में, हाथों-पैरों में और वचन व्यवहार में नहीं बढ़ी. किन्तु फैशन में बढ़ी है । यह भाग्यवानी गिराने वाली है, पैरों को मजबूत रखने वाली नही है । पहिले के लोग ऐसी फिसलने की चीजों से दूर रहते थे । I सावधानी चाहिये सारी जातियों का । मैंने प्रारम्भ में कहा था कि लोग आज के जमाने में एकीकरण करने की कहते हैं । यह दृष्टिकोण बुरा नहीं है परन्तु बुरा क्या है कि केले के छिलके के समान आज फिसलने के साधन अधिक हैं । यदि सावधानी से चला जाय, तब तो ठीक है । अन्यथा फिसले बिना नहीं रहोगे । आप कहें कि फिसलते ही सावधान हो जावेगे ? किन्तु भाई, फिसलने के बाद संभलना अपने हाथ नहीं रहता । कुसंग में पड़ कर कोई चाहे कि हम नहीं विगड़ेंगे, सो तुम्हारी तो हस्ती क्या है ? बड़े-बड़े महात्मा लोग भी ऐसे फिसले और इतने नीचे गिरे कि फिर ऊँचे नहीं आ सके | क्यो नही आ सके ? क्योकि फिसलने का काम ही बुरा है । भाई, जैसा जैन-सन्तों का त्याग है, वैसा वैष्णव और शैत्र-साधुओं का नहीं है । फिर भी त्याग की भावना सबमें थी और सभी ने मोक्ष के मार्ग में कनक और कामिनी को दुर्गम घाटी कहा है । यथा मोक्षपुरी के पत्थ में, कनक कामिनी से बचे दुर्गम घाटी दोय | शिव पद पावे सौय ॥ जब तक सनातनी साधु कनक और कामिनी से बचे रहे, तब तक उनकी साधु-संस्था पर कोई आंच नहीं आई । परन्तु जब से उन्होंने पैसे पर हाथ डाला और स्त्री रखने लगे, तभी से उनका अध पात प्रारम्भ हो गया । आज उन सम्प्रदायों में कितने सच्चे साधु मिलेंगे ? पहिले जितने मठ और मन्दिर थे, उनके महन्त क्या स्त्रियां रखते थे । नहीं रखते थे । वे ब्रह्मचर्य से रहते थे, तो उनमें त्याग था । उनका राजाओं पर प्रभाव था और वे जो कुछ भी कहते थे, राजा लोग उसे स्वीकार करते थे । जब वे लोग फिसल गये और स्त्रियो को रखकर मन्दिरो को अपना घर बनालिग, तब से समाज में उनका महत्त्व भी गिर गया। भाई, फिसलने के पश्चात् किसी का महत्त्व कायम नहीं रह सकता। इसलिए भगवान ने कहा है कि किसी की भी संगति करो, व्यवहार करो, इसमें आपत्ति नहीं । किन्तु जहां पर देखो कि आचार-विचार का ह्रास सम्भव है, मर्यादा टूटने का भय है, तो ऐसे ठिकानों से दूर रहो । उनके साथ
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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