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________________ प्रवचन-सुधा देव, दानव और मानव सब उसकी उपासना करते है और उसे नमस्कार करते हैं। ___ इस गाथा को और उसके उक्त अर्थ को पटकर लोकाशाह को बड़ा आश्चर्य हुला कि कहा तो धर्म का यह स्वरूप है और कहा आज उसके धारण करने वाले साधु-सन्तो की चर्या है। दोनो मे तो राई और पहाड या जमीन और भासमान जैसा अन्तर है। उनकी जिज्ञासा उत्तरोत्तर बढने लगी और उसकी पूत्ति के लिए उन्होंने शास्त्रो की दो-दो प्रतिलिपियाँ करनी प्रारम्भ कर दी। एक तो अपने निजी भडार के लिए और दूसरी ज्ञान भडार के लिए । इस प्रकार उन्होंने सब शास्न लिख लिये। जब सव शास्त्रो की प्रतिलिपिया तैयार हो गई और एक-एक प्रति ज्ञान मजार को सौप दी गई, तव उन्होने अपने भडार के शास्त्रो का एक-एक करके स्वाध्याय करना प्रारम्भ क्यिा। दिन में जितना स्वाध्याय करते, रात मे उस पर मनन और चिन्तत करते रहते । उस समय स्वार्थी और अज्ञानी साधुओं ने लोगो मे यह प्रसिद्ध कर रखा था कि श्रावक को शास्त्र पटने का अधिकार नहीं है, केवल सुनने का ही अधिकार है और ऐसी उक्तिया बना रखी थी कि 'जो वाचे सून, उसके मरे पुत्र'। इस प्रकार के बहमो से कोई भी गृहस्थ शास्त्र के हाथ नहीं लगाता था। फिर पटना तो दूर की बात थी । ऐसी कहावत प्रचलित करने का आशय यही था कि यदि श्रावक लोग शास्त्रो के जान कार हो जावेगे तो फिर हमारी पोल-पट्टी प्रकट हो जायगी और फिर हमे कोई पूछेगा नहीं। लोगो ने इनसे उक्त कहावत सुना कर कहा....-शाहजी. आपका घर हरा-भरा है। जब इन सूत्रो के पढने से पुत्र मर जाने का भय है, तव आप इन्ह मत पटिये । लोकाशाह ने उन लोगो को उत्तर दिया- अश्लील कहानियो और पाप-वर्धक कथाओ के पढने से तो मरते नहीं और भगवान की वाणी जो प्राणिमान की कल्याण कारिणो है-उसके पढने से मर जावेंगे ? मैं इस बहम मे आनेवाला नहीं हूँ। लोगो के बहकाने पर भी लोकाशाह ने शास्त्रो का पहना नहीं छोडा, बल्कि और अधिक लगन के साथ पद्धने लगे और अपन सम्पक म आनेवाले लोगो को पढाने और सुनाने लगे । ज्यो-ज्यो वे आगे पढ़ते गये, त्यो त्यो नवीन-नवीन तत्व उनको मिलते गये और उनके पढ़ने-पटाने मे उन्हे भारी आनन्द आने लगा। धर्मकान्ति का बिगुल भाइयो, इधर तो उनके स्वाध्याय में वृद्धि हो रही थी और दूसरी ओर लोगो मे उनके प्रति विरोध भी बढ रहा था । आखिर मे अटवाडा, सिरोही,
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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