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________________ धर्मवीर लोकाशाह ३७३ शास्त्र-स्वाध्याय को लगन अव लोकाशाह राज-काज से निवृत्त होकर और घर-बार की चिन्ता से विमुक्त होकर नये-नये शास्त्रों का स्वाध्याय करने लगे। उस समय न आजकल के समान ग्रन्थ मिलना सुलभ थे और न शास्त्रों का सर्वत्र संग्रह ही था। जहां कहीं प्राचीन शास्त्र-मंडार थे, तो उसके अधिकारी लोग देने म आनाकानी करते थे। उस समय अहमदाबाद में एक बड़ा उपासरा खरतरगच्छ का था। उसमें अनेक शास्त्र ताड़पत्रों पर लिखे हुए थे। उनमें दीमक लग गई और वे नष्ट होने लगे। अधिकारियों ने उनकी प्रतिलिपि कराने का विचार किया। लोकाशाह के अक्षर बहुत सुन्दर थे और ये स्वाध्याय के लिए ग्रन्थ ले भो जाते थे और उनमें से आवश्यक बाते लिखते भी जाते थे। एक दिन उस भडार के स्वामी श्री ज्ञानजी यति महाराज लोकाशाह की हवेली पर गोचरी के लिए आये। उनकी दृष्टि इनके लिखे हुए पत्रों पर पड़ी। सुन्दर अक्षर और शुद्ध लेख देखकर उन्होंने सोचा कि यदि ताड़पत्रों वाले शास्त्रों की प्रतिलिपि इन से करा ली जाय, तो शास्त्रों की सुरक्षा हो जायगी । और ज्ञान नष्ट होने से बच जायगा। उन्होंने उपासरे में जाकर पंचों को बुलाया और शास्त्रों को दीमक लगने और उनके नष्ट होने की बात कहकर प्रतिलिपि कराने के लिए कहा। पंचों ने कहा-इन प्राकृत और संस्कृत के गहन ग्रन्थों को पढ़ने, और जानने वाला कोई सुन्दर लेखक मिले तो प्रतिलिपि करा ली जाय । सवकी सलाह से लोकाशाह को बुलाया गया और कहा गया कि शाहजी, मंडार के शास्त्र नष्ट हो रहे हैं। संघ चाहता है कि आपकी देख-रेख में इनकी प्रतिलिपि हो जाय तो शास्त्रों की रक्षा हो जाय । लोकाशाह ने कहा-समाज बड़ा है और जयवन्त है । यदि वह आज्ञा देता है, तो मुझे स्वीकार है । इस प्रकार संघ के आग्रह पर उन्होंने आगम-ग्रन्थों की प्रतिलिपि अपनी देख-रेख में कराना स्वीकार कर लिया। अव ज्ञान भंडार से शास्त्र उनके पास आने लगे। वे स्वयं भी लिखते और अच्छे लेखकों से भी लिखाने लगे । सर्वप्रथम दशकालिक सूत्र को प्रतिलिपि करना उन्होने प्रारम्भ की। उसकी पहिली गाथा है धम्मो मंगलमुस्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमंसन्ति जस्स धम्मे सया सणो । अर्थात् धर्म उत्कृष्ट मंगल रूप है, धर्म अहिंसा, मंयम और तग रूप है । जो इस उत्कृष्ट धर्म को मन में धारण करता है, त्रियोग गे पालन करता है,
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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