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________________ र्मिकथा का ध्येय ३४७ अभया का कुचक्र कुछ समय के बाद कौमुदी महोत्सव आया । राजा ने सारे शहर में रोपणा करा दी कि सब स्त्री-पुरुप महोत्सव मनाने के लिए उद्यान में एकत्रित हो । राजा अपने दल-बल के साथ उद्यान में गया और नगर-निवासी लोगों के साथ सुदर्शन सेठ भी गया। उनके पीछे राज-रानी भी अपनी सखी-सहेलियों और दासियों के साथ उद्यान में जाने के लिए निकली । इसी समय सुदर्शन सेठ की सेठानी मनोरमा भी अपने चारों पुत्रों के साथ रथ में बैठकर उद्यान की ओर चली। कपिला महारानी अभया के साथ रथ में बैठी हुई थी। उसने जैसे ही देवांगना सी सुन्दर मनोरमा और उसके देवकुमारों जैसे सुन्दर लड़कों को देखा तो महारानी से पूछा-यह सुन्दर स्त्री किसकी है और ये देवकुमार से बालक किसके हैं ? रानी ने कहा-अरी, तुझे अभी तक यह भी ज्ञात नहीं है । अपने नगरसेठ सुदर्शन की यह पत्नी मनोरमा है और ये उसी के लड़के हैं । यह सुनकर कपिला हंस पड़ी । रानी ने पूछा---पुरोहितानीजी, आप हंसी क्यों ? पहिले तो कपिला ने वत्तलाने में कुछ आनाकानी की। मगर जब महारानी जी का अति आग्रह देखा तो वह बोली महारानीजी, आश्चर्य इस बात का है कि सुदर्शन सेट तो पुरुपत्व-शून्य हैंनपुसक हैं-फिर उनके ये चार-चार पुत्र हों, यह बात मैं कैसे मान ? यदि ये पुत्र इसी ने जाये हैं, तव यह निश्चय से दुराचारिणी है । यह सुनकर गनी ने रोप-भरे शब्दों में कहा-- अरी हिये की अन्धी, तू क्या कहती है ? मनोरमा के समान तो अपने राज्यभर में भी कोई स्त्री पतिव्रता नहीं है । मैं तेरी बात को नही मान सकती । तब कपिला बोली--महारानी जी, लाल आँखें दिखाने से क्या लाभ ? जो बात मैं कह रही हूं, वह सत्य है । रानी ने पूछा-तूने यह निर्णय कैसे किया है। तब कपिला ने आप बीती सारी घटना कह सुनाई । जब सुदर्शन सेठ ने स्वयं अपने मुख से अपने को पुरुपत्व हीन कहा है, तब मै कैसे मानं कि ये पुत्र उमी के है ? इसीलिए मैं कहती हूं कि मनोरमा सती नहीं है । तन्त्र रानी ने कहा गरी मूर्स, तू पुरुषों की माया को नहीं जानती । तेरे से छुटकारा पाने के लिए ही सेठ ने अपने को पुरुषत्व हीन कह दिया है और तुझे सेठ ने इस प्रकार ठग लिया है । सुदर्शन तो पुरुष शिरोमणि पुरुप है, साक्षात् कामदेव है । जब कपिला ने देखा कि महारानी जी मेरी बात किमी भी प्रकार से मानने को तैयार नही है, तब उसने व्यग्य पूर्वक काहा--
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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