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________________ ३३८ प्रवचन-सुधा प्रयत्न करेंगे तो आपकी मारी चिन्ताएं-चाहे वे शारीरिक हो, या मानसिक इहलौकिक हो, या पारलौकिक, सब अपने आप ही दूर हो जायगी और आप अन्धकार व्याप्त मार्ग से निकल कर प्रकाश से परिपूर्ण राजमार्ग पर पहुच जावेगे जिस पर कि निश्चिन्त होकर चलते हुए अपनी अभीप्ट यात्रा सहज मे ही पूर्ण कर लेंगे और चिर-प्रतिक्षित शान्ति को प्राप्त कर सदा के लिए निश्चिन्त हो जावेगे। बन्धुओ, आप लोग विचार करे कि डाक्टर के द्वारा बतलायी गयी ऊची से ऊची औपधि लने, विटामिन की गोलिया खाने और प्रतिदिन दूध पीने पर भी यदि हम स्वास्थ्य लाभ नही कर पाते है तो कही न कही पर मूल मे भूल अवश्य है ? वह भूल चिन्ता ही है। जब मनुष्य चिन्ता से ग्रस्त रहता है, तव उसका खाया-पिया सब व्यर्थ हो जाता है। किसी ने एक व्यक्ति से कहा--- इस बकरे को खूब खिलाओ-पिलाओ। मगर देखो -यह न मोटा-ताजा होने पावे और न कमजोर ही। उस व्यक्ति ने किसी चिन्तक व्यक्ति से इसका उपाय पूछा । उसने कहा -- इसको सिंह के पिंजरे के पास बाघ कर खूब-खिलातेपिलाते रहो । न यह घटेगा और न बढेगा। इधर खाने-पीने पर जितना बटगा उधर सिंह की ओर देखकर कही यह मुझे खा न जाय ।" इस चिन्ता से सूखता भी रहेगा। धर्मप्रिय सुदर्शन भाइयो, यह चिन्ता बहुत दुरी है । इसे दूर करने के लिए भगवान ने ये पूर्वोक्त कार प्रचार की कथाए बताई है। इनमे से आक्षेपणी और विक्षेपणी कथा के द्वारा अपनी आत्मा की कमजोरियो और अनादि-कालीन एवं नवीन उत्पन्न हुई मिथ्या धारणाओ को दूर करो, क्योकि उन को दूर किये बिना शक्ति प्राप्त नही हो सकती है । जब हम इतिहास को पढते हैं, तब ज्ञात होता है कि भारत को शन ओ के आक्रमण करने पर अनेक बार हार की मार खानी पडी और अनेक उतार-चढाव देखने पड़े हैं। परन्तु यह भारत और उसके निवासी चिन्तन में जागरूक थे, तो आज यह स्वतत्र है और विदेशियो की दासता से मुक्त है। इसी प्रकार आत्म-स्वातन्त्र्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम आक्षं पणी और विक्षेपणी कथा के द्वारा आत्म-शुद्धि करे और सवेगिनी एव निर्वेदिनी कथा के द्वारा इसे सपोषण देवे और उसका सरक्षण कर तो एक दिन आप लोग अवश्य ही सभी सासारिक और आत्मिक चिन्ताओ से मुक्त होकर के सदा के लिए आत्म-स्वातल्य प्राप्त कर लेंगे। आत्म स्वातन्त्र्य की प्राप्ति का नाम ही मुक्ति है, मोक्ष है और उसे ही शिव पद की प्राप्ति कहते हैं ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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