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________________ सुनो और गुनो! ३३१ थोड़ी देर के वाद • यक्ष प्रकट हुआ । उसने पूछा-क्या चाहते हो ? इन दोनों ने कहा - हमें यहां से उस पार पहुंचा दो, जिससे हमारा उद्धार हो जावे । तव यक्ष ने कहा – देखो, मैं घोड़ा बनकर तुम लोगों को अपनी पीठ पर बैठा करके पार कर दंगा । मगर इस बात का ध्यान रखना कि यदि वह देवी आजावे और तुम्हें प्रलोभन देकर लुमावे और वापिस चलने के लिए कहे तो तुम पीछे की ओर मत देखना । यदि देखा तो मैं तुम्हें वहीं पर समुद्र में पटक दूंगा और वह तुम्हें पकड़ कर तलवार से तुम्हारे खंड-खंड करके मार देगी। यदि तुम्हें हमारा कहना स्वीकार हो तो हमारी पीठ पर वैठ जाओ । उनके हां करने पर यक्ष ने घोड़े का रूप बनाया वे दोनों उसकी पीठ पर सवार हुए और वह तीन वेग से उन्हें ले कर उड़ चला। इतने में ही वह देवी अपने स्थान पर आई और उन दोनों को वहां पर नहीं देखा तो उसने सब उद्यानों को देखा । अन्त में वह उड़ती हुई समुद्र में पहुंची तो देखा कि दे दोनों यक्षाश्व की पीठ पर चढ़े हुए जा रहे है । तव उसने पहिले तो भारी भय दिखाया । पर जब उन दोनों में से किसी ने भी पीछे की ओर नहीं देखा, तब उसने मन मोहिनी सुन्दरी का रूप बनाकर हाव-भाव और विलास विनयपूर्वक करुण वचनों से इन दोनों को मोहित करने के लिए अपना माया जाल फैलाया । उसने कहा-हे मेरे प्राणनाथो, तुम लोग मुझे छोड़ कर कहां जा रहे हो ? मैं तुम्हारे विना कैसे जीवित रह सकेंगी ? देखो, मेरी ओर देखो। मुझ पर दया करो और वापिस मेरे साथ चलकर दिव्य भोगों को भोगो । इस प्रकार के वचनों को सुनकर जिनपाल का चित्त तो चलायमान नहीं हुआ। किन्तु जिनरक्ष का चित्त प्रलोभनों से विचलित हो गया और जैसे ही उसने पीछे को मोर देखा कि यक्ष ने उसे तुरन्त पीठ पर से नीचे गिरा दिया। उसके नीचे गिरते ही उस देवी ने उसे माले की नोंक पर ले लिया ऊपर उछाल कर तलवार से उसके खंड-खंड कर दिये। जिनपाल अडिग रहा । उसे यक्ष ने समुद्र के पार पहुंचा दिया 1 पीछे उसे धन-माल के साथ चम्पा नगरी भी पहुंचा कर वापिस अपने स्थान को लौट आया । ___भाइयो, इस कथानक से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि जिन काम-भोगों को हमने दुःखदायी समझ कर छोड़ दिया है, उन्हें नाना प्रलोभनों के मिलने पर भी उनकी ओर देखें भी नहीं । अन्यथा जिनरक्ष के समान दुःख भोगना पड़ेगा जिनरक्ष ने सुना तो सही पर गुना नहीं, उस पर अमल नहीं किया जिस कारण उसका सर्वनाश हो गया । आप भी बचपन से सुन रहे हो, संसार की दशा देखतेदेखते बूढे हो चले हो, फिर भी नहीं चेत रहे हो । जिस भाई का तुमने लालन-पालन
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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