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________________ ३३० प्रवचन-सुधा आगे बढ़ने पर उस द्वीप की देवी शृगार करके सामने आई और स्वागत करती हुई उन दोनो भाइयो को अपने महल मे ले गई। उसने कहा-हमे मालूम है कि तम लोगो का सर्वस्व समुद्र मे नप्ट हो गया है। अब तुम लोग कोई चिन्ता मत करो। यह रत्न द्वीप है और मेरे भण्डार मे अपार सम्पदा है । अत यही रहो और हमारे साथ सासारिक सुख भोगो ! वे लोग भी कामभोगो मे लुभा गये और उसके साथ सुख भोगते हुए रहने लगे। एक बार उसे इन्द्र के पास से बुलावा आया तो उसने जाते हुए कहा-देखो, यदि यहा पर मेरे विना तुम लोगो का चित्त न लगे तो इस महल के चार उद्यान है, यहा पर बावडी-सरोवर आदि सभी मनोरजन के साधन हैं, अत घूमने चले जाना । पर देखो उत्तरवाले उद्यान मे भूल करके भी मत जाना । वहा पर भयकर राक्षस रहता है वह तुम्हे खा जायगा। यह कहकर वह देवी चली गई। ____ जब उन दोनो भाइयो का मन महल में नहीं लगा तो वे पहिले कुछ देर तक पूर्व दिशा के उद्यान मे गये । कुछ देर घूमने के बाद चित्त नहीं लगने से दक्षिण दिशा के उद्यान मे गये और जब वहा भी चित्त नहीं लगा तो पश्चिम दिशा वाले उद्यान मे जाकर धूमे । जव वही भी चित्त नही लगा और देवी भी तब तक नही याई, तो उन्होने सोचा कि उत्तर दिशा के उद्यान में चल कर देखना तो चाहिए कि कैसा राक्षम है, अत वे साहस के साथ उसमे भी चले गये । भीतर जाकर के क्या देखते हैं कि वहा पर सैकडा नर ककाल पडे है चारो ओर से भयकर दुर्गन्ध आ रही है । आगे बढने पर देखा कि एक मनुष्य शूली पर टगा हुमा अपनी मौत के क्षण गिन रहा है। उससे उन्होने पूछामाई, तुम्हारी यह दशा किसने की है ? उसने बताया कि जिमके मोह-जाल मे तुम लोग फ्म रहे हो, वह एक दिन हमे भी इसी प्रकार से फसला करके ले आई थी। कुछ दिन तक उसने मेरे साथ भोग भोगे । जब मुझे क्षीणवीर्य देखा तो इस शूली पर दाग कर तुम लोगो को बहका लाई है। यहा पर जितने भी नर क्यान दिख रहे हैं, वे सब उसी डायन के कुकृत्य हैं। यह सुनकर वे बहुत डर । उन्होंने उससे बच निकलने का कोई उपाय पूछा । उसने कहा--इधर से उतरते हए तुम लोग समुद्र में किनार जाओ । वहा पर समुद्र का रक्षक एक यदा आकर पूछेगा कि क्या चाहते हो । तव तुम अपने उद्धार की बात कहना । वह घोडा बनर और अपनी पीठ पर बैठा करके समुद्र के पार पहुचा देगा। यह सुनते ही वे दोनो उम द्वीप से जल्दी जल्दी उत्तर और समुद्र के किनारे परच पर यक्ष की प्रतीक्षा करते हुए मगवान का नाम स्मरण करने लगे।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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