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________________ सुनो और गुनो ! वस्तु के सेवन से शरीर सदा नीरोग रह सकता है । तब उसने कहा-एक हरडे के सेवन से मनुष्य जीवन भर नीरोग रह सकता है। वैद्यक शास्त्र में हरीत की (हरडे) को माता के समान जीवन-रक्षिका बताया गया है। "हरीत को भूक्षु राजन् ! मातावत् हितकारिणी !" पंडित के दिये गये उत्तर से राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसे भरपूर दक्षिणा देकर विदा किया। जीवन अमूल्य है भगवान महावीर ने समय को सबसे अमूल्य बताया है और वार-बार गौतम के बहाने से सब प्राणियों को सम्बोधन करते हुए कहा है कि 'समयं गोयम, मा पमायए' । अर्थात् हे गौतम, एक समय का भी प्रमाद मत करो। इस एक प्रभाद मे सर्व पापों का समावेश हो जाता है। आठ मद, चार कपाय, इन्द्रियों के पांचों विषय, निद्रा और चारों प्रकार की विकथाएं, ये सव प्रमाद के ही अन्तर्गत हैं । भाई, भगवान महावीर का यह एक ही वाक्य हमारा उद्धार करने के लिए पर्याप्त है। जब भगवान को एक ही वचन में इतना सार भरा हुया है, तब जो भगवान के कहे हुए अनेको वचनों का श्रवण करते है और उन्हें हृदय में धारण करते हैं, तो उनके यानन्द का क्या कहना है ? सव वचनों को सुनने वाला तो नियम से सुख को प्राप्त करेगा ही। बन्धुओ, मनुष्य का जीवन स्वल्प है। उसमें भी अनेक आधि-व्याधिया लगी हैं। फिर कुटुम्ब के भरण-पोपण से ही मनुष्य को अवकाश नहीं मिलता है और शास्त्रों का ज्ञान तो अगम अपार है। इसलिए हमें सार वात को ही स्वीकार करना चाहिए। महाभारत के समय की बात है जब कि कौरवो और पाण्डवों की सेना युद्ध के लिए आमने-सामने मोर्चा बाधे खड़ी हुई अपने-अपने सेनापतियों के आदेश की प्रतीक्षा कर रही थी । उस समय अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहाभगवन्, बताइये, यहा पर कौन-कौन मेरे शत्रु है, जिन पर मैं प्रहार करू ? तव श्री कृष्ण ने सामने खड़े हुए भीष्म, द्रोण, कर्ण, और कौरव आदि को वताया। अर्जुन बोला भाचार्याः पितर. पुत्रास्तथैव च पितामहाः । मातुला. श्वसुराः पौत्राः श्यालाः सम्बन्धिनस्तथा ॥ एतान्न हन्तुमिच्छामि, नतोऽपि मधुसूदन ! अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते ।।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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