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________________ सिंहवृत्ति अपनाइये ! ३११ स्व यहां उपस्थित बहिनें सोच रही होंगी कि शास्त्रों में केवल पुरुपों के के लिए ही उत्तम उपमाएं दी गई हैं, हमारे लिए तो कहीं कोई उत्तम उपमा नहीं दी गई है ? सो वहिनो, आप लोगों को ऐसा नहीं विचारना चाहिए, क्योंकि उक्त चारों प्रकार के मनुष्यों को उत्पन्न करने वाली तो आप लोग ही हैं ! जब आप लोगों में सिंह, हाथी जैसे गुण होंगे, तभी तो आपके पुत्र उन गुणो वाले होगे । जब जिन गुणों के कारण आपके पुत्रों की प्रशंसा हो रही है, तव आपकी प्रशंसा स्वयं ही हो रही है, ऐसी जानना चाहिए। फिर वीरांगना को सिंहनी कहा ही जाता है, मस्ती की चाल चलने वाली स्त्री को गजगामिनी कहते हैं और दान देने वाली वहिन को कामधेनु की उपमा. दी ही जाती है । यदि किसी को बहू बेटी के शरीर पर सौ तोला सोना है और सुन्दर वस्त्र पहिने हुई है तो उसकी सासू और मां की प्रशंसा और वड़प्पन स्वयं ही सिद्ध है, भले ही वह सोने की एक भी वस्तु न पहिने हो और साधारण वस्त्र ही पहिने हो । यदि सेठजी का मुनीम गले में मोतियों की माला पहिने हुए दुकान पर बैठा है और सेठजी कुछ भी नही पहिने हुए हों, तो भी लोग यही कहेंगे कि जिसके मुनीम ऐसे सम्पन्न है तो उसके मालिक की सम्पन्नता का क्या कहना है ? भाइयो, एक वार सोजत के खक्खड़ों की वारात चेलावास गई। वहां सिंधी और भंडारी जोगे रहते थे। वे जानते हैं कि ये खक्खड़ लोग बारातों में बड़े सज-धजकर और चटक-मटक वस्त्राभूपण पहिन कर आते हैं । भाई, दुनिया का व्यवहार ही ऐसा है कि जिसके पास कम पूजी और माल कम होता है, वह पहिनावे-ओढ़ावे में अधिकता ही दिखाता है और जिसके पास भरपूर माल होता है, वह सादा ही वेपभूपा में रहता है । हां, तो उन खक्खड़ों ने चेलावास जाकर अपने प्रदर्शन की धूम मचा दी और आपस में कहने लगे कि लड़की का बाप तो दिखता ही नहीं है कि कौन है ? कोई मामूली-सा ही आदमी मालूम पड़ता है ? लड़की के वापने गायों को दुहने के लिए जाते समय यह सुन लिया । उसकी गौ शाला में साठ-सत्तर गायें-मैसें और बछड़े पाड़े थे। जब वराती लोग उसके यहा जीमने के लिए आ रहे थे कभी लड़की के बापने अपने सब जानवरों को सोने के डोरे, जनेऊ और किलगी आदि पहिना करके जंगल में चरने के लिए छोड़ा । वे वराती जानवरों को सोने के आभूषण पहिने सेठ की गौशाला से निकलते हुए देखकर गांववालों से पूछने लगे कि ये किसके जानवर हैं और कहां जा रहे हैं ? लोगों ने बताया कि जिसके यहां आप लोग वारात लेकर आये हैं, ये उसी के जानवर हैं और अब चरने
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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