SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ प्रवचन-सुधा कार्य को प्रारम्भ कर देते हैं, उसमें हजारों विघ्न और बाधाओं के आ जाने पर भी उसे छोड़ने नहीं है, किन्तु पूरा करके ही दम लेते हैं। क्योंकि सुकृती पुरुष अंगीकार की गई बात का पालन करते हैं और अन्त तक उसका निर्वाह करते हैं। __जो व्यक्ति आस्था रखकर काम करते हैं, भले ही उसके बीच में कितनी हो विघ्न-बाधाएँ क्यों न आवें, किन्तु अन्त में सफलता प्राप्त होती ही है । आज देखो-अमेरिका और रूस वालों ने अन्तरिक्ष जगत् की खोजबीन के लिए किये गये प्रयत्नों में सफलता प्राप्त कर ही रहे हैं। इस सब सफलता का श्रेय उन लोगों की एक मात्र कर्तव्यनिष्ठा का है। फिर जैनधर्म तो पुकार-पुकार करके कह रहा है कि जो भी जैसा बनना चाहे, आस्थापूर्वक बराबर-प्रयत्न करता रहे तो नियम से वैसा ही बन सकता है। आप लोग भी व्यापार करने की आस्था से ही घर-बार छोड़कर परदेश जाते हैं तो कमाकर लाते हैं, या नही ? इसी आस्था के बल पर बड़े-बड़े ऋपियों और मुनियों ने घोरातिघोर उपसर्ग सहे और यातनाएं सहीं, परन्तु वे अपनी आस्था से डिगे नहीं तो अन्त में सफलता पाई, या नहीं ? पाई हो है और सदा के लिए संसार के परिभ्रमण से मुक्त हो गये हैं। आज भी आस्थावान् व्यक्ति प्रत्येक दिशा में सफलता पा ही रहे हैं। मंत्र-तंत्रादि भी आस्थावान व्यक्ति को ही सिद्ध होते हैं, अनास्था वालो को नहीं होते। एक बार द्वारिका में सभा के भीतर श्री कृष्ण जी ने कहा कि जो रवता चल पर जाकर और सर्व प्रथम भगवान अरिष्टनेमि की वन्दना करेगा, उसे मैं अपना प्रधान अश्वरत्न इनाम में दूंगा। अनेक लोग दूसरे दिन बहुत सवेरे ही भगवान् की वन्दना के लिए दौड़े ! किन्तु श्रीकृष्ण का कालक नाम का पुत्र सबसे पहिले पहुंचा । और भगवान की वन्दना करके लौट आया । इधर बलभद्र जी के पुत्र कुंजमंवर की नींद कुछ देर से खुली तो वे उठते ही सामायिक लेकर बैठ और सोचने लगे- हे भगवान्, जो आपके पास जाते हैं और वन्दन करके व्रत-प्रत्याख्यान स्वीकार करते हैं, वे धन्य हैं। परन्तु मैं कितना प्रमादी हूं कि अभी तक सोता रहा । अपने इस प्रमाद पर मुझे भारी दुःख है और अपने आपको धिक्कारता हूँ। मेरी यह परोक्ष बन्दना आप स्वीकार कीजिए, यह कहते हुए शुद्ध हृदय से सामायिक के काल भर भगवान की भक्ति में तल्लीन रहता है और उनके गुण-गान करता रहता है । दूसरे दिन जब श्री कृष्ण जी सभा में विराज रहे थे, तव कालक ने आकर कहा-मैंने आज सर्वप्रथम भगवान का वन्दन किया है। उन्होंने कहा
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy