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________________ मनुष्य की चार श्रेणियां २५३ हो रही है, इसलिए इस मौसम में भी परिश्रम करना पड़ रहा है। श्रेणिक ने समझा कि खेती के लिए इसे बैलों की जोड़ी पूरी नहीं हो रही है। अत: उन्होंने द्वारपाल से कहा अपनी गौशाला में सेतीस हजार बैल-जोड़ियां बन्धी है, इसे ले जाकर सव दिखा दे और जो जोड़ी पसन्द आ जाय, वह इसे दे दो। मम्मण दोला- महाराज, मुझे तो केवल एक ही बैल चाहिए है. यह कहकर वह द्वारपाल के साथ गया। द्वारपाल ने जाकर दारोगा से कहा महाराज का आदेश है कि जो भी वैल इसे पसन्द आ जाए, वह इसे दे दिया जाय । दारोगा ने एक-एक करके सारे बैल दिखाए। वह सोचने लगा कि इसे यदि मैं ले जाऊँगा तो दाना-पास और खिलाना पड़ेगा । प्रत्यक्ष में उसने दारोगा से कहा मुझे कोई भी बैल पसन्द नहीं है। तब वह बोला----अरे अभागे, मगध देश के उत्तम से उत्तम बैल यहां उपस्थित है, और तुझे कोई पसन्द नहीं है । मम्मण बोला आपका कह्ना सत्य है । पर मेरे बैल जैसा कोई बैल दिसे तो तूं । वेमेल जोड़ी किस काम की। तब दारोगा ने उसे द्वारपाल को सौंप कर कहा इसे महाराज के पास वापिस ले जाओ। उसने जाकर कहा-~-महाराज, इसे कोई वैल पमन्द नही आया । श्रेणिक ने पूछा- क्यों भाई, क्या बात है? मम्मण बोला-.-महाराज, मेरे बैल जैसा तो एक भी बैल नहीं दिखा । फिर अनमेल वैल लेकर के मैं क्या करूं ? यदि आप मेरे जैसा बैल देखें तो मैं लेने को तैयार हूं। मम्मण की यह बात सुनकर श्रेणिक को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने कहाअच्छा कल हम स्वयं आ करके तेरा बैल देखेगे और उसकी जोड़ का दूसरा मंगवा देंगे। अच्छा तू यह बता कि तेरा मकान कहां है? तब उसने अपना सब नाम-पता ठिकाना बता दिया। मम्मण बोला-~महाराज, आप अकेले नहीं पधारें, किन्तु महारानी साहब मंत्री लोगों और सरदारों के साथ पधारने की कृपा करें। श्रेणिक ने स्वीकृति दे दी। सेठ ने घर जाकर सब मुनीम-गुमास्तों को बुलाया और कहा कि श्रेणिक महाराज पूरे परिवार के साथ अपने यहां पधारेंगे अत: अमुक-अमुक तैयारी इस प्रकार की होनी चाहिए और रसोई इस प्रकार की बननी चाहिए। वे लोग सर्व प्रकार की तैयारी करने में जुट गये । उधर दूसरे दिन सवेरै श्रेणिक ने अभयकुमार को बुलाकर कहा--अपने नगर में एक मम्मण सेठ अमुक गली में रहता है। उसे एक वैल की जरूरत है । अपनी जोड़ियों में से उसे कोई भी बैल पसन्द नहीं आया है, अत: उसका बल देखने के लिए आज उसके यहां चलेंगे । और जैसा उसका बैल होगा, वैसा मंगाकर उसे दिला देंगे। यह सुनकर अभयकुमार बोले-महाराज,
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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