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________________ २५२ प्रवचन-सुधा थी और परिश्रमी मनोवृत्ति थी, वहीं दूसरी ओर कृपणता भी चरम सीमा को पहुंची हुई थी। उसे एक वार सनक सवार हुई कि मैं रत्नों की वैल जोड़ी बनाई। अतः उसने बैल बनाना प्रारम्भ कर दिया । जब बन कर तैयार हो गया, तब दूसरे को बनाना प्रारम्भ किया। वनतेबनते बैल का सारा सरीर बन गया । केवल मींग बनाना शेष रहे । उस समय सावन का महिना था और वर्षा की झडी लग रही थी, फिर भी वह मम्मण लकड़ी काटने के लिए जंगल में गया । लकडी काटते हुए सूर्यास्त हो गया। फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और भारी उठाकर बरसते पानी मे वह नगर की ओर चला। उस समय राजा श्रेणिक रानी चेलना के माथ महल के सबसे नीचे की मंजिल में बैठे हुए चौपड़ खेल रहे थे और बरसाती मौसम का आनन्द ले रहे थे। जब यह मम्मण सेठ राज महल के समीप में जा रहा था, तभी रानी चेलना ने पान की पीक थकने के लिए गवाक्ष से मुख वाहिर निकाला तो देखा कि बरसते पानी में गीले कपडे हो जाने से चलने में असमर्थ दरिद्र-सा व्यक्ति जा रहा है। उसे देखकर चेलना का दिल दया से आर्द्र हो गया। उसने श्रेणिक महाराज से कहा-आप तो कहा करते हैं कि मेरे राज्य में कोई दुखी नही है, सब समृद्ध और सुखी है । पर इधर देखिए, यह वेचारा ऐसे बरसते-पानी में भी लकड़ी की भारी लिए आ रहा है, ठंड के मारे जिसका शरीर कांप रहा है । यदि यह दरिद्रता से दुखी नहीं होता, तो क्या ऐसे मौसम में घर से बाहिर निकलता ! श्रेणिक ने भी गवाक्ष से झांक कर देखा, तभी विजली चमकी तो वह दिखायी दे गया । श्रेणिक ने द्वारपाल को बुलाकर कहा-देखो--राजमहल के समीप से जो लकड़हारा जा रहा है, उसे लेकर मेरे पास आओ। उसने जाकर उससे कहा अबे, भारी यहीं रख और भीतर चल, तुझे महाराज बुला रहे हैं। यह सुनते ही मम्मण चौका और सोचने लगा . आज तक तो मेरी महाराज से रामासामा भी नहीं हुई है, और मैंने कोई अपराध भी नहीं किया है। फिर महाराज मुझे क्यों बुला रहे हैं । जव मम्मण यह सोच ही रहा था, तब उसने धक्का देकर उसकी भारी नीचे पटक दी योर बोला कि सीधे चलता है, या फिर मैं धक्का देकर ले चनू । यह सुनकर मम्मण भयभीत हुआ और चुपचाप उसके साथ भीतर गया । और सामने पहुंचने पर उसने श्रेणिक को नमस्कार किया । श्रेणिक ने पूछा-भाई, क्या तू इतना गरीब है कि जो ऐसे मौसम में लकड़ी लाने के लिए विवश हुआ ? मम्मण बोला-~-वैलों की जोड़ी पूरी नहीं
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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