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________________ २२६ प्रवचन-सुधा हो जाता है । वे दोनों युगलिया अपना अंगूठा चूसते हुए कुछ दिनों में जवान हो जाते हैं । पुनः वे आपस में स्त्री-पुरुप के रूप में रहने लगते हैं। उस समय वे किसी भी प्रकार का काम-धन्धा नहीं करते हैं, क्योंकि उनकी आवश्यकताएं उस काल में होने वाले काल्पवृक्षों से पूरी हो जाती हैं । इप्स आरे का काल प्रमाण तीन कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ! आयु दो पल्योपम और शरीर उत्सेध दो कोश-प्रमाण होता है । शेप सर्व व्यवस्था प्रथम आरे के समान रहती है । हां, सुख की मात्रा कुछ कम हो जाती है। इसके व्यतीत होने पर सुपमसुपमा नाम का तीसरा आरा-प्रारम्भ होता है। इसका काल-प्रमाण दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । आयु एक पल्योपम और शरीर-उत्सेध एक कोश प्रमाण है । शेप सर्व व्यवस्था दूसरे आरे के समान रहती है। केवल सुख के अंश में कुछ और कमी हो जाती है और दुख का अंश भी आ जाता है। कर्म युग का प्रारम्भ तीसरे आरे के बीतने पर दुपम-सुपमा नाम का चौथा आरा प्रारम्भ होता है । इसमें सुख की मात्रा और कम हो जाती है और दुःख की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। इसी प्रकार आयु घटकर एक पूर्व कोटी वर्ष की रह जाती है और शरीर का उत्सेध भी घटकर पांच सौ धनुष प्रमाण रह जाता है। तीसरे आरे के अन्त में ही भोगभूमि की व्यवस्था समाप्त हो जाती है और उसके पश्चात् कर्मभूमि का प्रारम्भ होता है । भोगभूमि की समाप्ति के साथ ही कल्पवृक्ष भी समाप्त हो जाते हैं । अतः मनुष्य असि, मसी, कृपि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प के द्वारा अपनी आजीविका चलाते है। जुगलिया व्यवस्था भी बन्द हो जाती है और माता-पिता के सामने ही सन्तान का जन्म होने लगता है । उस समय कुलकर उत्पन्न होते है, जो लोगों को रहन-सहन का ढंग सिखाते है । विवाह प्रथा, समाज व्यवस्था भी इसी आरे में प्रारम्भ होती है और इसी आरे में चौवीस तीर्थंकर एवं अन्य शलाकापुरुष भी उत्पन्न होते हैं । तीसरे आरे तक के युगलिया जीव मरकर देवों में ही पैदा होते थे। चौधे आरे में धर्म-कर्म का प्रचार होने से जहा एक ओर मोक्ष का द्वार खुल जाता है, वहीं दूसरी ओर नरकादि दुर्गतियो के भी द्वार खुल जाते हैं । अर्थात् इस आरे के जीव अपने पुण्य-पाप के अनुसार मरकर सभी गतियो में उत्पन्न होने लगते है। इस आरे की आयु काय आदि उत्तरोत्तर घटते जाते है। घटते-घटते चौथे आरे के अन्त में एक सौ पच्चीस वर्ष की आयु और शरीर की ऊँचाई सात हाथ प्रमाण रह जाती हैं। इस चौथे आरे का काल प्रमाण बयालीस हजार वर्ष कम एक कोडाकोड़ी सागरोपम है। इस आरे के
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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