SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ प्रवचन-सुधा अर्थात् जिनमें एक भी गुण नहीं है, ऐसे निर्गुणी व्यक्ति भी आज द्रव्य के, धन के आश्रय से गुणी माने जाते हैं । और भी कहा है यस्यार्थस्तस्य मित्राणि, यस्यार्थस्तस्य बान्धवाः । यस्यार्थः स पुमान् लोके, यस्यार्थः स च पण्डितः ।। अर्थान्—जिसके पास धन है उसके सैकड़ों लोग मित्र बन जाते हैं, सैकड़ों बन्धु-बान्धव हो जाते हैं। वह लोक में महान् पुरुष कहलाता है और संसार उसे पंडित और चतुर भी मानने लगता है। सर्वगुणा : कांचनमाश्रयंति भाइयो, पैसे के पीछे मनुष्य के सब अवगुण ढक जाते हैं । आज लोग पैसे के ऐसे मोह जाल में फंसे हए हैं कि वे न्याय को भी अन्याय और अन्याय को भी न्याय कहते और करते नहीं चूकते हैं । आज मनुष्य मार कर भी हत्यारा पुरुष अदालत से छूट जाता है । जाति मे यदि कोई गरीब मनुष्य कुछ मोठा काम कर देता है तो आप लोग उसे दंड देते हैं। और धनवान् यदि बड़े से बड़ा पाप कर देता है तो उससे कुछ भी नहीं कहते हैं । बस, राजा श्रेणिक भी उस मेतार्य के धन के प्रभाव से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी पुत्री की शादी उसके साथ कर दी। गव मेतार्य के राजजमाई होते हो उसका यश चारों ओर फैल गया और सब लोग उसका यथेष्ट आदर. सत्कार करने लगे। वह भी कुछ दिनों में भंगियों के द्वारा किये गये अपमान को विलकुल भूल गया और राजा श्रेणिक की पुत्री के साथ सुख भोगता हुआ आनन्द से काल विताने लगा। जब देव ने देखा कि मेतार्य की प्रतिष्ठा पहिले से भी अधिक जम गई है, तब एक दिन उसने आकर कहा---अरे मेतार्य ! अब तो चेत । वह बोला --- मित्र, कुछ दिन और ठहर जा। देव ने देखा कि यह मेरे कहने से संयम अगीकार नहीं करनेवाला है, तब उसने कहा-देख कल यहां पर भगवान महावीर स्वामी पधारने वाले हैं। तू जाकर के उनकी दिव्य वाणी को तो सुनना। दैवत वचनोतें प्रतिवोच्यो, संयम की उर ठानी, काया माया अथिर अहूको, ज्यों अंजुली को पानी । इन्द्र धनुष अरु रयण स्वप्न सम, ओपम दोनो जानी, इनमें राचे सो अज्ञानी, विरचे सो सुलतानी ।।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy